Thursday 31 July 2014

Nag Panchami – नागपूजा भक्तोंको देता है सर्पभय से मुक्ति


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श्रावणमासके शुक्लपक्षकी पंचमी तिथिको नागपंचमी (Nag Panchami – Fri, 1 August 2014) का त्योहार नागोंको समर्पित है। इस त्योहारपर व्रतपूर्वक नागोंका अर्चन-पूजन होता है। वेद और पुराणोंमें नागोंका उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रूसे माना गया है। नागोंका मूलस्थान पाताललोक प्रसिद्ध है।

पुराणोंमें ही नागलोककी राजधानीके रुपमें भोगवतीपुरी विख्यात है। भगवान्‌ विष्णुकी शय्याकी शोभा नागराज शेष बढ़ाते हैं। भगवान्‌ शिव और गणेशजीके अलंकरणमें भी नागोंकी मह्त्त्वपूर्ण भूमिका है। पुराणोंमें भगवान्‌ सूर्यके रथमें द्वादश नागों का उल्लेख मिलता है, जो क्रमश: प्रत्येक मासमें उनके रथ के वाहक बनते हैं। नागदेवता भारतीय संस्कृतिमें देवरुपमें स्वीकार किये गये हैं।

देवी भागवतमें प्रमुख नागोंका नित्य स्मरण किया गया है। हमारे ऋषि-मुनियोंनें नागोपासनामें अनेक व्रत-पूजनका विधान किया है। श्रावणमासके शुक्ल पक्षकी पंचमी नागोंको अत्यन्त आनन्द देनेवाली है -‘नागानामानन्दकरी’ पंचमी तिथिको नागपूजामें उनको गो-दुग्धसे स्नान करानेका विधान है। कहा जाता है कि एक बार मातृ-शापसे नागलोक जलने लगा । इस दाहपीडाकी निवृत्तिके लिये (नागपंचमीको) गो-दुग्धस्नान जहाँ नागोंको शीतलता प्रदान करता है, वहाँ भक्तोंको सर्पभय से मुक्ति भी देता है।

ब्रह्माजीने पंचमी तिथिको नागोंको पाण्डववंशके राजा जनमेजय द्वारा किये जानेवाले नागयज्ञसे यायावरवंशमें उत्त्पन्न तपस्वी जरत्कारु के पुत्र आस्तीक द्वारा रक्षाका वरदान दिया था। तथा इसी तिथिपर आस्तीकमुनिने नागोंका परिरक्षण किया था । अत: नागपंचमीका यह पर्व ऎतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है ।
श्रावनमासके शुक्लपक्षकी पंचमीको नागपूजाका विधान है। व्रतके साथ एक बार भोजन करने का नियम है। पूजामें पृथ्वीपर नागोंका चित्राड्कन किया जाता है। स्वर्ण, रजत, काष्ठ या मृत्तिकासे नाग बनाकर पुष्प, गुन्ध, धूप-दीप एवं विविध नैवेधोंसे नागोंका पूजन होता है।
निज गृहके द्वारमें दोनों ओर गोबरके सर्प बनाकर उनका दधि, दूर्वा, कुशा, गन्ध, अक्षत, पुष्प, मोदक और मालपुआ आदिसे पूजा करने और ब्राह्मणोंको भोजन कराकर एकभुक्त व्रत करनेसे घरमें सर्पोंका भय नहीं होता है।
On Nag Panchami, the women draw figures of snakes on the walls of their houses using a mixture of black powder, cow dung and milk.
Then offerings of milk, ghee, water and rice are made. It is believed that in reward for this worship, snakes will never bite any member of the family.

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