Thursday 31 July 2014

MERA BHARAT MAHAN BHARAT (CHHOTI SI BATE)

ए  मेंरा भारत देश  सदीयोसे महान हे और महान रहेंगा , लेकिन हमारी सोटी गलतियों के कारन ज्यादा मुश्किल पड़ती हे , हम भारत वासी पुरे विस्व को हिला सकते हे , इस  कोई राय नहीं हे , हमें छोटी बातो को ध्यान देना पड़ेंगा , हमें ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने पड़ेंगे , हम गाव  वालो को इ कदम उठाना होगा ,



जय भारत

Jai Badrinath – Mythology

Jai Badrinath – Mythology

बद्रीनाथ का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। स्कंद पुराण के अनुसार जब भगवान शिव से बद्रीनाथ के उद्गम के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह शाश्वत है जिसकी को‌ई शुरू‌आत नहीं। इस क्षेत्र के स्वामी स्वयं नारायण हैं। जब ईश्वर चिरंतर है तो उसके नाम, छवि, जीवन तथा आवास सभी चिरंतर ही है। समयानुसार केवल पूजा का रूप एवं नाम ही बदलता है। स्कंद पुराण में भी वर्णन है कि सतयुग में इस स्थल को मुक्तिप्रद कहा गया, त्रेता युग में इसे भोग सिद्धिदा कहा गया, द्वापर युग में इसे विशाल नाम दिया गया तथा कलयुग में इसे बद्रिकाश्रम कहा गया। महाभारत महाकाव्य की रचना पास ही माणा गांव में व्यास एवं गणेश गुफा‌ओं में की गयी।

माना जाता है कि एक दिन भगवान विष्णु शेष शय्या पर लेटे हु‌ए थे तथा उनकी पत्नी भगवती लक्ष्मी उनके पैर दबा रही थी, उसी समय ज्ञानी मुनि नारद उधर से गुजरे तथा उस शुभ दृश्य को देखकर विष्णु को सांसारिक आराम के लि‌ए फटकारा। भयभीत होकर विष्णु ने लक्ष्मी को नाग कन्या‌ओं के पास भेज दिया तथा स्वयं एक घाटी में हिमालयी निर्जनता में गायब हो गये जहां जंगली बेरियां (बद्री) थी जिसे वे खाकर रहते। एक योग ध्यान मुद्रा में वे क‌ई वर्षों तक तप करते रहे। लक्ष्मी वापस आयी और उन्हें नहीं पाकर उनकी खोज में निकल पड़ी। अंत में वह बद्रीवन पहुंची तथा विष्णु से प्रार्थना की कि वे योगध्यानी मुद्रा का त्याग कर मूल ऋंगारिक स्वरूप में आ जाये। इसके लि‌ए विष्णु सहमत हो गये लेकिन इस शर्त्त पर कि बद्रीवन की घाटी तप की घाटी बनी रहे न कि सांसारिक आनंद का और यह कि योगध्यानी मुद्रा तथा ऋंगारिक स्वरूप दोनों में उनकी पूजा की जाय। प्रथम मुद्रा में लक्ष्मी उनकी बांयी तरफ बैठी थी एवं दूसरे स्वरूप में लक्ष्मी उनकी दायीं ओर बैठी थी फलस्वरूप उन दोनों की पूजा एक दैवी जोड़े के रूप में होती है तथा व्यक्तिगत प्रतिमा‌ओं की तरह भी जिनके बीच को‌ई वैवाहिक संबंध नहीं होता क्योंकि परंपरानुसार पत्नी, पति के बायीं ओर बैठती है। यही कारण है कि रावल या प्रधान पुजारी को केवल केरल का नंबूद्रि ब्राह्मण लेकिन एक ब्रह्मचारी भी होना चाहि‌ए। योगध्यानी की तीन शर्तों का कठोर पालन किया गया है। गर्मी में तीर्थयात्रियों द्वारा विष्णु के ऋंगारिक रूप की पूजा की जाती है तथा जाड़े में उनके योग ध्यानी मुद्रा की पूजा देवी-देवता‌ओं तथा संतों द्वारा की जाती है।
इसी किंवदन्ती का दूसरा विचार यह है कि भगवान विष्णु ने अपने घर Baikunth का त्याग कर दिया। सांसारिक भोगों की भर्त्सना की तथा नर और नारायण के रूप में तप करने बद्रीनाथ आ गये। उनके साथ नारद भी आये। उन्होंने आशा की कि मानव उनके उदाहरण से प्रेरणा ग्रहण करेगा। ऐसा ही हु‌आ, देवों, संतों, मुनियों तथा साधारण लोगों ने यहां पहुंचने का जोखिम मात्र भगवान विष्णु का दर्शन पाने के लि‌ए उठाया। इस प्रकार भगवान को द्वापर युग आने तक अपने सही रूप में देखा गया जब नर और नारायण के रूप में उनका अवतार कृष्ण और अर्जन के रूप में हु‌आ (महाभारत)।
कलयुग में भगवान विष्णु बद्रीवन से गायब हो गये क्योंकि उन्हें भान हु‌आ कि मानव बहुत भौतिकवादी हो गया है तथा उसका ह्दय कठोर हो गया है। देवगण एवं मुनि भगवान का दर्शन नहीं पाकर परेशान हु‌ए तथा ब्रह्मदेव के पास गये जो भगवान विष्णु के बारे में कुछ नहीं जानते थे कि वे कहां हैं। उसके बाद वे भगवान शिव के पास गये और फिर उनके साथ बैकुंठ गये। यहां उन्हें यह आकाशवाणी सुना‌ई पड़ी कि भगवान विष्णु की मूर्त्ति बद्रीनाथ के नारदकुंड में पायी जा सकती है तथा इसे स्थापित किया जाना चाहिये ताकि लोग इसकी पूजा कर सके। देववाणी के अनुसार 6,500 वर्ष पहले मंदिर का निर्माण स्वयं ब्रह्मदेव द्वारा किया गया तथा विष्णु की मूर्त्ति, ब्रह्मांड के सृजक विश्वकर्मा द्वारा बनायी गयी। जब विधर्मियों द्वारा मंदिर पर हमला हु‌आ तथा देवों को भान हु‌आ कि वे भगवान की प्रतिमा को अशुद्ध होने से नही बचा सकते तब उन्होंने फिर से इस प्रतिमा को नारदकुंड में डाल दिया। फिर भगवान शिव से पूछा गया कि भगवान विष्णु कहां गायब हो गये तो उन्होंने बताया कि वे स्वयं आदि शंकराचार्य के रूप में अवतरित होकर मंदिर की पुनर्स्थापना करेंगे इसलि‌ए यह शंकराचार्य जो केरल के एक गांव में पैदा हु‌ए और 12 वर्ष की उम्र में अपनी दिव्य दृष्टि से बद्रीनाथ की यात्रा की। उन्होंने भगवान विष्णु की मूर्त्ति को फिर से लाकर मंदिर में स्थापित कर दिया। कुछ लोगों का विश्वास है कि मूर्त्ति बुद्ध की है तथा हिंदू दर्शन के अनुसार बुद्ध, विष्णु का नवां अवतार है और इस तरह यह बद्रीनाथ का दूसरा रूप समझा जा सकता है।
अपने हिन्दुत्व पुनरूत्थान कार्यक्रम में जब आदि शंकराचार्य बद्रीनाथ धाम गये तो वहां उन्हें पास के नारदकुंड के जल के नीचे वह प्रतिमा मिली जिसे बौद्धों के वर्चस्व काल में छिपा दिया गया था। उन्होंने इसकी पुर्नस्थापना की। आदि शंकराचार्य ने महसूस किया कि केवल शुद्ध आर्य ब्राह्मणों ने उत्तरी भारत के मैदानों में अपना आवास बना लिया तथा इसमें से कुछ शुद्ध आर्य ब्राह्मण केरल चल गये, जहां अपने नश्ल की शुद्धता बनाये रखने के लि‌ए उन्होंने कठोर सामाजिक नियम बना लिये। शंकराचार्य के समय के दौरान आर्य यहां 2,700 वर्ष से रह रहे थे तथा वे यहां के स्थानीय लोगों के साथ घुल-मिल गये एवं एक-दूसरे के साथ विवाह कर लिया। बौद्धों ने ब्राह्मण-धर्म तथा संस्कृत भाषा को लुप्तप्राय कर दिया पर थोड़े-से आर्य ब्राह्मण, Nambudripad ने, जो केरल के दक्षिण जा बसे थे, अपनी जाति की संपूर्ण, शुद्धता तथा धर्म को बचाये रखा। इस महान सुधारक ने अनुभव किया कि मात्र नम्बूद्रिपादों को ही भगवान बद्रीनाथ की सेवा करने का सम्मान मिलना चाहि‌ए। उनका आदेश आज भी माना जाता है, मुख्य पुजारी सदैव केरल का एक नम्बूद्रिपाद ब्राह्मण ही होता है, जहां यह समुदाय, निकट से जड़ित आज भी परिवार ऋंखला में सामाजिक व्यवहारों में तथा विवाह-नियमों में वही पुराने कठोर नियमों को बनाये हु‌ए हैं।

Sri Krishna Janmashtami 2014 – Vrat and Puja Date


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Sri Krishna Janmashtami 2014
Sun, 17 August 2014 (सप्तमी युक्त अष्टमी)
Mon, 18 August 2014 (ISKCON) 
श्रीमद्भागवत , भविष्यपुराण, अग्नि आदि पुराणों के अनुसार  भगवान् श्रीकृष्ण (Lord Krishna) का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी , बुधवार , रोहिणी नक्षत्र एवं वृष के चन्द्रमा कालीन अर्धरात्रि के समय हुआ था |
ऋषि व्यास , नारद आदि ऋषियों के मतानुसार सप्तमी युक्त अष्टमी ही व्रत , पूजन आदि हेतु ग्रहण करनी चाहिए |
वैष्णव संप्रदाय के अधिकाँश लोग उदयकालिक नवमी युता श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को ग्रहण करते हैं | 
Jai Shri Krishna

Shravan Maas 2014: श्रावण शिवाराधन


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Shravan Maas Dates : Sun, 13 July 2014 to Sun, 10 August 2014

Shavan First Monday : 14 July 2014
The month of Shravan is the fifth month of the Hindu calender beginning from Chaitra, and is the most auspicious month of the Chaturmas. On Purnima or fullmoon day, or during the course of the month the star ‘Shravan’ rules the sky, hence the month is called Shavan. This month is spread out with innumerably religious festivals and ceremonies and almost all the days of this month are auspicious.
Shravan Month श्रावण मासमें आशुतोष भगवान्‌ शंकरकी पूजाका विशेष महत्व है। जो प्रतिदिन पूजन न कर सकें उन्हें सोमवारको शिवपूजा अवश्य करनी चाहिये और व्रत रखना चाहिये। सोमवार भगवान्‌ शंकरका प्रिय दिन है, अत: सोमवारको शिवाराधन करना चाहिये।
श्रावणमें पार्थिव शिवपूजाका विशेष महत्व है। अत: प्रतिदिन अथवा प्रति सोमवार तथा प्रदोषको शिवपूजा या पार्थिव शिवपूजा अवश्य करनी चाहिये।
सोमवार (Shravan Somvar) के व्रत के दिन प्रातःकाल ही स्नान ध्यान के उपरांत मंदिर देवालय या घर पर श्री गणेश जी की पूजा के साथ शिव-पार्वती और नंदी की पूजा की जाती है। इस दिन प्रसाद के रूप में जल  ,  दूध  ,  दही  ,  शहद  ,  घी  ,  चीनी  ,  जने‌ऊ  ,  चंदन  ,  रोली  ,  बेल पत्र  ,  भांग  ,  धतूरा  ,  धूप  ,  दीप और दक्षिणा के साथ ही नंदी के लि‌ए चारा या आटे की पिन्नी बनाकर भगवान पशुपतिनाथ का पूजन किया जाता है। रात्रिकाल में घी और कपूर सहित गुगल, धूप की आरती करके शिव महिमा का गुणगान किया जाता है। लगभग श्रावण मास के सभी सोमवारों को यही प्रक्रिया अपना‌ई जाती है।
इस मासमें लघुरुद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र पाठ करानेका भी विधान है।
इस मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामूठ च़ढ़ा‌ई जाती है। वह क्रमशः इस प्रकार है :
प्रथम सोमवार को- कच्चे चावल एक मुट्ठी, दूसरे सोमवार को- सफेद तिल्ली एक मुट्ठी, तीसरे सोमवार को- ख़ड़े मूँग एक मुट्ठी, चौथे सोमवार को- जौ एक मुट्ठी और यदि पाँचवाँ सोमवार आ‌ए तो एक मुट्ठी सत्तू च़ढ़ाया जाता है।
शिव की पूजा में बिल्वपत्र (Belpatra) अधिक महत्व रखता है। शिव द्वारा विषपान करने के कारण शिव के मस्तक पर जल की धारा से जलाभिषेक शिव भक्तों द्वारा किया जाता है। शिव भोलेनाथ ने गंगा को शिरोधार्य किया है।
एक कथा के अनुसार श्रीविष्णु पत्नी लक्ष्मी ने शंकर के प्रिय श्रावण माह में शिवलिंग पर प्रतिदिन 1001 सफेद कमल अर्पण करने का निश्चय किया। स्वर्ण तश्तरी में उन्होंने गिनती के कमल रखे, लेकिन मंदिर पहुँचने पर तीन कमल अपने आप कम हो जाते थे। सो मंदिर पहुँचकर उन्होंने उन कमलों पर जल छींटा, तब उसमें से एक पौधे का निर्माण हु‌आ। इस पर त्रिदल ऐसे हजारों पत्ते थे, जिन्हें तोड़कर लक्ष्मी शिवलिंग पर चढ़ाने लगीं, सो त्रिदल के कम होने का तो सवाल ही खत्म हो गया।
और लक्ष्मी ने भक्ति के सामर्थ्य पर निर्माण कि‌ए बिल्वपत्र शिव को प्रिय हो ग‌ए। लक्ष्मी यानी धन-वैभव, जो कभी बासी नहीं होता। यही वजह है कि लक्ष्मी द्वारा पैदा किया गया बिल्वपत्र भी वैसा ही है। ताजा बिल्वपत्र न मिलने की दशा में शिव को अर्पित बिल्वपत्र पुनः चढ़ाया जा सकता है। बिल्वपत्र का वृक्ष प्रकृति का मनुष्य को दिया वरदान है।
सुहागन स्त्रियों को इस दिन व्रत रखने से अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है। विद्यार्थियों को सोमवार का व्रत रखने से और शिव मंदिर में जलाभिषेक करने से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है। बेरोजगार और अकर्मण्य जातकों को रोजगार तथा काम मिलने से मानप्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। सदगृहस्थ नौकरी पेशा या व्यापारी को श्रावण के सोमवार व्रत करने से धन धान्य और लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
वहीं भगवान श्री कृष्‍ण के वृन्‍दावन में भी सावन के महीने में बहारें छायीं रहेंगीं, जहॉं झूलों और रास लीला‌ओं का परम्‍परागत उत्‍सव रहेगा वहीं कृष्‍ण साधना और कृष्‍ण पूजा भी इन दिनों भारी संख्‍या में होगी ।
सावन (shavan) के पूरे महीने जहॉं शिव और कृष्‍ण की पूजा और साधना परम्‍परा चलेगी वहीं शिवालय और कृष्‍ण मन्दिर इन दिनों लोगों के मेलों से घिरे रहेंगे ।
आज भी उत्तर भारत में कांवड़ परम्परा का बोलबाला है। श्रद्धालु गंगाजल लाने के लि‌ए हरिद्वार  ,  गढ़ गंगा और प्रयाग जैसे तीर्थो में जाकर जलाभिषेक करने हेतु कांवड़ लेकर आते हैं। यह सब साधन शिवजी की कृपा प्राप्त करने के लि‌ए है।

Shravan Purnima Raksha Bandhan 2014


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Sun, 10 August 2014 - Shravani Purnima (Full Moon Day) a day of celebrations for Lord Shiva’s Devotee, while Raksha Bandhan is a festival meant for Brothers and Sisters.

10 August 2014 – Rakhi Muhurta & Mantra
Around mid-August, Hindus all over the world celebrate Shravan Purnima Raksha Bandhan. “Raksha” means protection, and “bandhan” means bound or binding.Raksha Bandhan is primarily a Indian festival kindling the deepest emotions of love and affection amongst the siblings.
Just like all Indian festivals, this is also celebrated with lots of verve. The sister ties the rakhi on the brother’s wrist and both pray for each others’ well being followed by a pledge from the brother to take care of his sister under all circumstances. The brother then usually gifts something to the sister to mark the occasion. Celebrated enveloped in the festivities. The mirth that surrounds the festival is unsurpassed. Amidst the merriment the rituals are also followed with great devotion.
Raksha Bandhan is a festival celebrating the bond of affection between brothers and sisters. The day when the siblings pray for each others’ well being and wish for each others’ happiness and goodwill. As the name ‘Raksha Bandhan’ suggests, ‘a bond of protection’, Raksha Bandhan is a pledge from brothers to protect the sister from all harms and troubles and a prayer from the sister to protect the brother from all evil.
The festival falls on the Shravan Purnima (full moon day of shravan month) which comes generally in the month of August. The sisters tie the silk thread called rakhi on their brother’s wrist and pray for their well being and brothers promise to take care of their sisters. The festival is unique to India creates a feeling of belongingness and oneness amongst the family.

Nag Panchami – नागपूजा भक्तोंको देता है सर्पभय से मुक्ति


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श्रावणमासके शुक्लपक्षकी पंचमी तिथिको नागपंचमी (Nag Panchami – Fri, 1 August 2014) का त्योहार नागोंको समर्पित है। इस त्योहारपर व्रतपूर्वक नागोंका अर्चन-पूजन होता है। वेद और पुराणोंमें नागोंका उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रूसे माना गया है। नागोंका मूलस्थान पाताललोक प्रसिद्ध है।

पुराणोंमें ही नागलोककी राजधानीके रुपमें भोगवतीपुरी विख्यात है। भगवान्‌ विष्णुकी शय्याकी शोभा नागराज शेष बढ़ाते हैं। भगवान्‌ शिव और गणेशजीके अलंकरणमें भी नागोंकी मह्त्त्वपूर्ण भूमिका है। पुराणोंमें भगवान्‌ सूर्यके रथमें द्वादश नागों का उल्लेख मिलता है, जो क्रमश: प्रत्येक मासमें उनके रथ के वाहक बनते हैं। नागदेवता भारतीय संस्कृतिमें देवरुपमें स्वीकार किये गये हैं।

देवी भागवतमें प्रमुख नागोंका नित्य स्मरण किया गया है। हमारे ऋषि-मुनियोंनें नागोपासनामें अनेक व्रत-पूजनका विधान किया है। श्रावणमासके शुक्ल पक्षकी पंचमी नागोंको अत्यन्त आनन्द देनेवाली है -‘नागानामानन्दकरी’ पंचमी तिथिको नागपूजामें उनको गो-दुग्धसे स्नान करानेका विधान है। कहा जाता है कि एक बार मातृ-शापसे नागलोक जलने लगा । इस दाहपीडाकी निवृत्तिके लिये (नागपंचमीको) गो-दुग्धस्नान जहाँ नागोंको शीतलता प्रदान करता है, वहाँ भक्तोंको सर्पभय से मुक्ति भी देता है।

ब्रह्माजीने पंचमी तिथिको नागोंको पाण्डववंशके राजा जनमेजय द्वारा किये जानेवाले नागयज्ञसे यायावरवंशमें उत्त्पन्न तपस्वी जरत्कारु के पुत्र आस्तीक द्वारा रक्षाका वरदान दिया था। तथा इसी तिथिपर आस्तीकमुनिने नागोंका परिरक्षण किया था । अत: नागपंचमीका यह पर्व ऎतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है ।
श्रावनमासके शुक्लपक्षकी पंचमीको नागपूजाका विधान है। व्रतके साथ एक बार भोजन करने का नियम है। पूजामें पृथ्वीपर नागोंका चित्राड्कन किया जाता है। स्वर्ण, रजत, काष्ठ या मृत्तिकासे नाग बनाकर पुष्प, गुन्ध, धूप-दीप एवं विविध नैवेधोंसे नागोंका पूजन होता है।
निज गृहके द्वारमें दोनों ओर गोबरके सर्प बनाकर उनका दधि, दूर्वा, कुशा, गन्ध, अक्षत, पुष्प, मोदक और मालपुआ आदिसे पूजा करने और ब्राह्मणोंको भोजन कराकर एकभुक्त व्रत करनेसे घरमें सर्पोंका भय नहीं होता है।
On Nag Panchami, the women draw figures of snakes on the walls of their houses using a mixture of black powder, cow dung and milk.
Then offerings of milk, ghee, water and rice are made. It is believed that in reward for this worship, snakes will never bite any member of the family.

Nag Panchami : Mantra and Puja

Nag Panchami : Mantra and Puja

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Nag Panchami (Shravan Krishna Paksha) : Wed, 16 July 2014 (Rajasthan & W. Bengal)

Nag Panchami (Shravan Shukla Paksha) :  Friday, 1 August 2014 (All India)

On Nag Panchami, the women draw figures of snakes on the walls of their houses using a mixture of black powder, cow dung and milk. Then offerings of milk, ghee, water and rice are made. It is believed that in reward for this worship, snakes will never bite any member of the family.
The snake deity worshipped on Naag Panchami is the Goddess Manasa.

Naag Puja and Mantra

KaalSarp Puja
KaalSarp Puja
There is also a sanskrit mantra to offer pray to Nine prime Naag (devta)
Naag Mantra

Swastika – an auspicious mark

The swastika is a benedictory or auspicious mark in the form of a cross, the four arms of which are bent at right angles. Besides Hindus, other communities and religions also consider this mark auspicious. It is therefore customary to make this mark before any auspicious ceremony or function.
In the Ganesh Puran it is said that the swastika is a form of Lord Ganesha. It is necessary that this be made before beginning any auspicious work. It has the power to remove all obstacles. Those who ignore it may fail. It is therefore customary to make all beginnings with the swastika.
The Swastika is also known as ‘Satiya’, which is a symbolic of the Sudarshan Chakra. People also consider it as a symbol denoting plus (+). That makes it a symbol of prosperity. The four dots around the swastika are symbolic of the four directions around us.
Religious texts explain that the eight arms of the swastika are symbolic of the earth, fire, water, air, sky, mind, emotions and feelings. The four main arms point in four directions. They represents the four eras- Satyug, Tretayug, Dwaparyug and Kalyug. They also represents the four castes – Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas and Shudras. They represents the four ashrams of life too – Brahmacharya, Grihast, Vanprasth and Sanyas. The four arms are also symbolic of the four basic aims of human pursuit – dharm (righteousness), arth (prosperity), Kaam (passion) and moksha (salvation). They are also symbolic of the four faces and four hands of Brahma and of the four Vedas – Rig-Veda, YajurVeda, Sam-Veda and atharva-veda. They are also symbolic of the four constellations – Pushya (8th), Chitra (14th), Shravan (22nd) and Revti (27th).
In one of the hymns in the Rig-veda it is said that the swastika is symbolic of Surya (Sun). In the Amarkosh, it is referred to as a pure and auspicious blessing.
In this way, the swastika is really symbolic of all the directions and of Gods and auspicious circumstances. One must appreciate its importance and adopt it as a part of everyday life.

शुभ विवाह मुहूर्त

शुभ विवाह मुहूर्त – Auspicious Dates for Marriage 2013 -14

Shubh_VivahAuspicious Dates for Marriage (शुभ विवाह मुहूर्त)

 

 

 

Birth (Moon) Sign/ नाम राशि Auspicious Date for Wedding – Groom (लड़का) Corrective Actions Auspicious Date for Wedding – Bride (लड़की)
Aries
  • Jan 2014 -20,21,22,23,27,28,31
  • Feb 2014 -1,3-4*,5,8,10,14,15,17,18,19,24,25,26
  • March 2014 – 2-3*,4,5,7
*चन्द्रमा का दान
  • Nov 2013 – 25,27,28,29,30
  • Dec 2013 – 4,5,6,7,8,10,12,13
  • Jan 2014 – 20,21,22,23,27,28,31
  • Feb 2014 – 1,3,4,5,8,10,14,15,17,18,19,24,25,26
  • March 2014 – 2,3,4,5,7
Taurus
  • Nov 2013 – 27,28,29,30
  • Dec 2013 – 6,7,8,10,12,13
  • Jan 2014 – 21,22,23,25,26,31
  • Feb 2014 – 1,3,4-5*,8,10,17,18,19,22,26
  • March 2014 – 2,3,4-5*,7
*चन्द्रमा का दान
  • Nov 2013 – 27,28,29,30
  • Dec 2013 – 6,7,8,10,12,13
  • Jan 2014 – 21,22,23,25,26,31
  • Feb 2014 – 1,3,4,5,8,10,17,18,19,22,26
  • March 2014 – 2,3,4,5,7
Gemini
  • Nov 2013 – 25,27,29,30
  • Dec 2013 – 4,8,10,12,13
  • Jan 2014 – No Dates
  • Feb 2014 –14,15,17,19,22,24,25,26
  • March 2014 – 2,3,4,5,7*
*चन्द्रमा का दान
  • Nov 2013 – 25,27,29,30
  • Dec 2013 – 4,8,10,12,13
  • Jan 2014 – 23,25,26,27,28,31
  • Feb 2014 –14,15,17,19,22,24,25,26
  • March 2014 – 2,3,4,5,7
Cancer
  • Nov 2013 – 25,27,28,29
  • Dec 2013 – 4,5,6,7,10,12,13
  • Jan 2014 – 20,21,22,23,25,26,,27,28,31
  • Feb 2014 –3,4,5,8,10*
 *चन्द्रमा का दान
  • Nov 2013 – 25,27,28,29
  • Dec 2013 – 4,5,6,7,10,12,13
  • Jan 2014 – 20,21,22,23,25,26,,27,28,31
  • Feb 2014 –3,4,5,8,10,14,15,17,18,19,22,24,25,26
  • March 2014 – 2,3,4,5,7
Leo
  • Nov 2013 – No more dates
  • Dec 2013 – No Dates
  • Jan 2014 – 20,21,22,23,27,28,31
  • Feb 2014 –1,5,8,10,14,15,17,18,19,24,25,26
  • March 2014 – 4,5,7
    –
  • Nov 2013 – 25,27,28,29,30
  • Dec 2013 – 4,5,6,7,8,12,13
  • Jan 2014 – 20,21,22,23,27,28,31
  • Feb 2014 –1,5,8,10,14,15,17,18,19,24,25,26
  • March 2014 – 4,5,7
Virgo
  • Nov 2013 – 25,27,28,29,30
  • Dec 2013 – 6,7,8,10
  • Jan 2014 – 20,21,22,23,25,26,31
  • Feb 2014 –1,3,4,8,10,14-15-17*,18,19,22,26
  • March 2014 – 2,3,7
 *चन्द्रमा का दान
  • Nov 2013 – 25,27,28,29,30
  • Dec 2013 – 6,7,8,10
  • Jan 2014 – 20,21,22,23,25,26,31
  • Feb 2014 –1,3,4,8,10,14,15,17,18,19,22,26
  • March 2014 – 2,3,7
Libra
  • Nov 2013 – 25,27,28,29,30
  • Dec 2013 – 4,5,,8,10,12,13
  • Jan 2014 – No dates
  • Feb 2014 –14,15,17-18-19*,22,24,25,26
  • March 2014 – 2,3,4,5
 *चन्द्रमा का दान
  • Nov 2013 – 25,27,28,29,30
  • Dec 2013 – 4,5,,8,10,12,13
  • Jan 2014 – 20,21,22,23,25,26,27,28,31
  • Feb 2014 –1,3,4,5,10,14,15,17,18,19,22,24,25,26
  • March 2014 – 2,3,4,5
Scorpio
  • Nov 2013 – 25,27,28,29-30*
  • Dec 2013 – 4,5,6,7,10,12,13
  • Jan 2014 – 20,21,22,23*,25,26,27,28,31
  • Feb 2014 –3,4,5,8
  • March 2014 – No dates
 *चन्द्रमा का दान
  • Nov 2013 – 25,27,28,29,30
  • Dec 2013 – 4,5,6,7,10,12,13
  • Jan 2014 – 20,21,22,23,25,26,27,28,31
  • Feb 2014 –3,4,5,8,14,15,17,18,19,22,24,25,26
  • March 2014 – 2,3,4,5,7
Sagittarius
  • Nov 2013 – No more dates left
  • Dec 2013 – No Dates
  • Jan 2014 – 20,21,22,23,25-26*,27,28,31
  • Feb 2014 –1,5,8,10,14,15,17,18,19,22*,24,25,26
  • March 2014 – 4,5,7
 *चन्द्रमा का दान
  • Nov 2013 – 25,27,28,29,30
  • Dec 2013 – 4,5,6,7,8,12,13
  • Jan 2014 – 20,21,22,23,25,26,27,28,31
  • Feb 2014 –1,5,8,10,14,15,17,18,19,22,24,25,26
  • March 2014 – 4,5,7
Capricorn
  • Nov 2013 – 27,28,29,30
  • Dec 2013 – 4-5*,6,7,8,10
  • Jan 2014 – 21,22,23,25,26,27-28*,31
  • Feb 2014 –1,3,4,8,10,17,18,19,22,24-25-26*
  • March 2014 – 2,3,7
  *चन्द्रमा का दान
  • Nov 2013 –  27,28,29,30
  • Dec 2013 – 4,5,6,7,8,10
  • Jan 2014 – 21,22,23,25,26,27,28,31
  • Feb 2014 –1,3,4,8,10,17,18,19,22,24,25,26
  • March 2014 – 2,3,7
Aquarius
  • Nov 2013 –  25, 27,29,30
  • Dec 2013 – 4,5-6*,7,8,10,12,13
  • Jan 2014 –  No dates
  • Feb 2014 –14,15,17,19,22,24,25,26*
  • March 2014 – 2,3,4,5
 *चन्द्रमा का दान
  • Nov 2013 –  25,27,29,30
  • Dec 2013 – 4,5,6,7,8,10,12,13
  • Jan 2014 – 20,23,25,26,27,28,31
  • Feb 2014 –1,3,4,5,10,14,15,17,19,22,24,25,26
  • March 2014 – 2,3,4,5
Pisces
  • Nov 2013 –  25,27,28,29,30
  • Dec 2013 – 4,5,6,7-8*,10,12,13
  • Jan 2014 – 20,21,22,23,25,26,27,28,31
  • Feb 2014 –1*,3,4,5,8
  • March 2014 – No dates
  *चन्द्रमा का दान
  • Nov 2013 –  25,27,28,29
  • Dec 2013 – 4,5,6,7,8,10,12,13
  • Jan 2014 – 20,21,22,23,25,26,27,28,31
  • Feb 2014 –1,3,4,5,8,14,15,17,18,19,22,24,25,26
  • March 2014 – 2,3,

Thursday 17 July 2014

VED- PURAN LINK

http://www.vedpuran.com/

श्रीसत्यनारायण व्रतकथा एवं पूजन विधि – Invoke the Blessings of Lord Vishnu

श्रीसत्यनारायण व्रत-पूजन सामग्री

Shri Satyanarayan Vrat Katha
केले के खंभे, पंचपल्लव, कलश, पंचरत्‍न, चावल, कपूर, धूप, पुष्पो कि माला, श्रीफल, ऋतुफल, अंग वस्त्र, नैवेद्य, कलावा, आम के पत्ते, पान, यज्ञोपवीत, वस्त्र, गुलाब के फूल, दीप, तुलसी दल, पंजीरी, पंचामृत (दूध, दही, शहद, शक्कर), केशर, बंदनवार, चौकी, भगवान सत्यनारायण की तसवीर ।

श्रीसत्यनारायण भगवान का पूजन विधि-विधान

श्रीसत्यनारायण व्रत से धन-धान्य, समृद्धि, ऐश्वर्य ,सौभाग्य तथा संतान सुख की प्राप्ति होती है। जिस किसी भी दिन मनुष्य के हृदय, मन तथा बुद्धि में पवित्रता-निर्मलता का समावेश हो जाए, उसी दिन यह व्रत आरंभ करना चाहिए। इसमें संक्रांति, एकादशी, पूर्णमासी आदि की वर्जना नहीं है। परंतु सायंकाल की बेला इसके लिए सर्वोत्तम  बेला है। पूजन के समय भगवान के लिए केले के बहुत से खम्भ लगाकर मंडप बनाएं। आम्रपल्लव का तोरण बांधें, वरुण कलशादि को स्थापित कर दिव्य सिंहासन पर भगवान सत्यनाराण की प्रतिमा या शालिग्राम की मूर्ति की स्वस्ति वाचन, संकल्प, पुण्याहवाचन आदि करते हुए गणेश-गौरी एवं अन्य देवताओं की पूजा कर भगवान सत्यनारायण की प्रतिष्ठा करें।
ब्राह्मण, बंधु-बांधव, परिवार के सभी सदस्यादि भक्तिपूर्वक जल, पंचामृत, चंदन, पुष्प, तुलसी पत्र, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, ताम्बूल, दक्षिणादि से पूजन करें। नैवेद्य में केला का फल, घी, दूध, पंजीरी आदि का प्रसाद शक्कर या गुड़ सब पदार्थ सवाया मिलाकर अर्पित करें। ब्राह्मण व कथा-पुस्तक का पूजन कर दक्षिणा अर्पित कर सज्जनों के सहित कथा का श्रवण करें।
तदुपरांत ब्राह्मणों तथा बंधु-बांधवों को भोजन कराकर स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें और फिर रात्रि भर भगवान के समक्ष गायन-वादन तथा संकीर्तन करें। इस प्रकार व्रत करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस कलि काल में दुःखों से मुक्ति और मनोवांछित फल की प्राप्ति का इससे उत्तम उपाय और कोई नहीं है।
श्रीसत्यनारायण व्रतकथा
प्रथम अध्याय
व्यास जी ने कहा- एक समय की बात है। नैमिषारण्य तीर्थ में शौनकादिक अठ्ठासी हजार ऋषियों ने पुराणवेत्ता श्री सूतजी से पूछा- हे सूतजी! इस कलियुग में वेद-विद्यारहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिलेगी तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनिश्रेष्ठ! कोई ऐसा व्रत अथवा तप कहिए जिसके करने से थोड़े ही समय में पुण्य प्राप्त हो तथा मनवांछित फल भी मिले। हमारी प्रबल इच्छा है कि हम ऐसी कथा सुनें।
सर्वशास्त्रज्ञाता श्री सूतजी ने कहा- हे वैष्णवों में पूज्य! आप सबने प्राणियों के हित की बात पूछी है। अब मैं उस श्रेष्ठ व्रत को आपसे कहूँगा जिसे नारदजी के पूछने पर लक्ष्मीनारायण भगवान ने उन्हें बताया था। कथा इस प्रकार है। आप सब सुनें। एक समय देवर्षि नारदजी दूसरों के हित की इच्छा से सभी लोकों में घूमते हुए मृत्युलोक में आ पहुँचे। यहाँ अनेक योनियों में जन्मे प्रायः सभी मनुष्यों को अपने कर्मों के अनुसार कई दुखों से पीड़ित देखकर उन्होंने विचार किया कि किस यत्न के करने से प्राणियों के दुःखों का नाश होगा। ऐसा मन में विचार कर श्री नारद विष्णुलोक गए। वहाँ श्वेतवर्ण और चार भुजाओं वाले देवों के ईश नारायण को, जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म थे तथा वरमाला पहने हुए थे, देखकर स्तुति करने लगे। नारदजी ने कहा- “हे भगवन! आप अत्यंत शक्ति से संपन्न हैं, मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती, आपका आदि-मध्य-अन्त भी नहीं हैं। आप निर्गुण स्वरूप सृष्टि के कारण भक्तों के दुखों को नष्ट करने वाले हो। आपको मेरा नमस्कार है।” नारदजी से इस प्रकार की स्तुति सुनकर विष्णु बोले- “हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या है। आपका किस काम के लिए यहाँ आगमन हुआ है? निःसंकोच कहें।” तब नारदमुनि ने कहा- “मृत्युलोक में सब मनुष्य, जो अनेक योनियों में पैदा हुए हैं, अपने-अपने कर्मों द्वारा अनेक प्रकार के दुःखों से पीड़ित हैं। हे नाथ! यदि आप मुझ पर दया रखते हैं तो बताइए उन मनुष्यों के सब दुःख थोड़े से ही प्रयत्न से कैसे दूर हो सकते हैं।” विष्णु भगवान ने कहा- “हे नारद! मनुष्यों की भलाई के लिए तुमने यह बहुत अच्छा प्रश्न किया है। जिस व्रत के करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है, वह व्रत मैं तुमसे कहना चाहता हूँ। बहुत पुण्य देने वाला, स्वर्ग तथा मृत्यु दोनों में दुर्लभ, एक उत्तम व्रत है जो आज मैं प्रेमवश होकर तुमसे कहता हूँ। श्री सत्यनारायण भगवान का यह व्रत विधि-विधानपूर्वक संपन्न करके मनुष्य इस धरती पर सुख भोगकर, मरने पर मोक्ष को प्राप्त होता है।” श्री विष्णु भगवान के यह वचन सुनकर नारद मुनि बोले- “हे भगवान उस व्रत का फल क्या है? क्या विधान है? इससे पूर्व यह व्रत किसने किया है और किस दिन यह व्रत करना चाहिए। कृपया मुझे विस्तार से बताएँ।” श्री विष्णु ने कहा- “हे नारद! दुःख-शोक आदि दूर करने वाला यह व्रत सब स्थानों पर विजयी करने वाला है।  भक्ति और श्रद्धा के साथ किसी भी दिन मनुष्य श्री सत्यनारायण भगवान की संध्या के समय ब्राह्मणों और बंधुओं के साथ धर्मपरायण होकर पूजा करे। भक्तिभाव से नैवेद्य, केले का फल, शहद, घी, शकर अथवा गुड़, दूध और गेहूँ का आटा सवाया लें (गेहूँ के अभाव में साठी का चूर्ण भी ले सकते हैं)।  इन सबको भक्तिभाव से भगवान को अर्पण करें। बंधु-बांधवों सहित ब्राह्मणों को भोजन कराएँ। इसके पश्चात स्वयं भोजन करें। रात्रि में नृत्य-गीत आदि का आयोजन कर श्री सत्यनारायण भगवान का स्मरण करता हुए समय व्यतीत करें। कलिकाल में मृत्युलोक में यही एक लघु उपाय है, जिससे अल्प समय और अल्प धन में महान पुण्य प्राप्त हो सकता है।
॥ इतिश्री श्रीसत्यनारायण व्रत कथा का प्रथम अध्याय संपूर्ण॥

Satsang (सत्संग)

दिनभरमें वह कार्य कर लें, जिससे रातमें सुखसे रह सके और आठ महीनोंमें वह कार्य कर ले, जिससे वर्षाके चार महीने सुखसे व्यतीत कर सके । पहली अवस्थामें वह कार्य करे, जिससे वृद्धावस्थामें सुखपूर्वक रह सके और जीवनभर वह कार्य करे, जिससे मरनेके बाद भी सुखसे रह सके ।
महाभारत, उधोग. ३५।६७-६८

Friday 11 July 2014

भाग्यसूक्तम् (Bhagya Suktam) का पाठ कर अपने सोये पड़े भाग्य को जगाये

भाग्यसूक्तम् (Bhagya Suktam)


ऊँ प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रा वरुणा प्रातरश्विना ।
प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातस्सोममुत रुद्रँ हुवेम ॥१॥
At dawn we invoke Fire God (Agni), Indra , Sun god(Mithra) ,
God of rain(Varuna) and the two Aswini kumaras(Doctors)
At dawn we invoke Bhaga(God of fortune), poosha(God of way),
Brahmanaspathi (Teacher of devas) , Soma( moon God) and Rudra(God of anger).
प्रातर्जितं भगमुग्रँ हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता ।
आद्ध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुरश्चिद्राजा चिद्यंभगं भक्षीत्याह॥२॥
In the morning we make as our own Bhaga, who is the son of Adhithi and a great supporter,  And therefor even the gods who appear to be great are making Bhaga their own.
भग प्रणेतर्भगसत्यराधो भगेमां धियमुदवददन्नः।
भगप्रणो जनय गोभि-रश्वैर्भगप्रनृभि-र्नृवन्तस्स्याम ॥३॥
Oh Bhaga , cross our way, Oh Bhaga who gives true gifts, continue giving your gifts,
Oh Bhaga add cows and horses to our store, Oh Bhaga bestow on us men and kings.
उतेदानीं भगवन्तस्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्।
उतोदिता मघवन् सूर्यस्य वयं देवानाँ सुमतौ स्याम ॥४॥
Make us one with wealth/luck and when light breaks and at noon,
And even at sunset , let us be under the good grace of the gods.
भग एव भगवाँ अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तस्स्याम।
तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीमि सनो भग पुर एता भवेह॥५॥
Let Bhaga be the one who gives me wealth/luck , and Oh Gods, make us lucky,
Oh Bhaga we pray you with all our mind, that you bhaga be our leader here.
समध्वरायोषसोऽनमन्त दधिक्रावेव शुचये पदाय।
अर्वाचीनं वसुविदं भगन्नो रथमिवाश्वावाजिन आवहन्तु॥६॥
Let due to our worship at dawn , make them come to a pure place like Dadikravan,
Similar to strong horses leading the chariot , let Bhaga turn towards us the essence of riches
अश्वावतीर्गोमतीर्नउषासो वीरवतीस्सदमुच्छन्तु भद्राः।
घृतं दुहाना विश्वतः प्रपीनायूयं पात स्वस्तिभिस्सदा नः॥७॥
Let the dawns be with us ,always safely with horses, cattle and heroes,
Milking the world with plenty and look after us ,Oh God with blessings.
यो माऽग्नेभागिनँ सन्तमथाभागं चिकीर्षति।
अभागमग्ने तं कुरु मामग्ने भागिनं कुरु ॥८॥
Oh Fire , the participating saints have offered the present offering
Oh fire let that portion be made that of the participators.

DEATH AND AFTER – Garuda Purana



















Garuda said- ‘ After visiting all the three ‘Lokas’ (World)I found the Earth (Prithvi) little overcrowded as compared to other ‘Lokas’. I also found that it provided better opportunities to a man both for materialistic enjoyments as well as his spiritual advancement. So, I have come to the conclusion that ‘Prithviloka’ was the best of all the ‘Lokas’ in every respect.
But, all round prevalence of sorrow and misery in ‘Prithviloka’ made me sad. I was really perplexed to see people performing complex rituals after the death of their relative. All these rituals appeared so absurd to me. I was really amazed to see people laying down their dead relatives on the ground. I could also not understand why a dead body is laid on the bed of ‘kusha’ grass and sesame seeds. I witnessed so many rituals that surprised me, for instance I could not understand the reason why donations are made after a man dies. I am puzzled by the mystery called death or, what becomes of him after he dies. The sight of sons lifting the dead body of their father on their shoulders is still fresh in my memory. I could not understand the reason why ‘ghee’(clarified butter) is applied on a dead body or why the relatives of the deceased chant ‘Yama sukta’ facing north. I was also surprised to see the son of the deceased being debarred from having meal along with his other relatives.
O Lord! Please reveal to me the significance of making ‘pinda- daans’ or, the significance of ‘tarpan’ rituals? Please tell me the proper method of offering ‘pinda daan’ and invoking ancestors? I find it hard to believe that all the deeds virtuous or evil committed by a man follows him after his death.’ This way Garuda flooded Lord Krishna with a barrage of questions and sought clarifications on them.
Lord Krishna replied–” I am so delighted that you have asked such important questions for the benefit of mankind. I am revealing to you the secrets, which were hitherto unknown even to the deities and yogis.
O Garuda! A man should try to beget a son with the help of means as mentioned in the scriptures because there is no salvation for a person bereft of son.
” Lord Krishna then went on to describe the proper rituals which are performed after the death of a man and said-
” First of all, the area should be purified by coating it with a layer of cow-dung (Gobar). This purified area is called ‘mandal’ and it is graced by the presence of the ‘Trinity’– Brahma, Shiva and Myself. Sesame seeds are then sprinkled on the purified area and kusha grass is spread. A person whose death is imminent is then laid down on the bed of kusha grass. Scriptures say that a person who does not leave his mortal body in the above mentioned way, wanders hither and thither in the form of a restless spirit. No amount of rituals can put such a soul to rest.
O Garuda! Sesame seed has manifested from my sweat and hence is extremely pure. All kind of evil forces like, ghosts, spirits, demons, etc. keep away from the place where it is used. Similarly, Kusha grass has manifested from my body hair and is graced by the presence of ‘Trinity’– Brahma, Shiva and Vishnu. Deities are satisfied if kusha grass is offered to them while ancestors are satisfied by the offerings of sesame seeds.
Scriptures say that if dying man is laid down on the bed of kusha grass spread on the land purified by cow-dung, he becomes absolved of all his sins.
There is a great significance of donating salt after the death of a person. Salt owes its origin to Me and donating it helps ancestors in attaining heaven. Donating salt also helps in reducing the pain and sufferings of a dying man and this is why it is donated along with other articles after a death of a person.
The relatives of the deceased should chant the sacred ‘Yama sukta’ facing north because it helps him to attain liberation.”
Lord Krishna then explained to Garuda the appropriate way of carrying the corpse to the cremation ground

Shri Amarnathji Yatra 2014

Amarnath Yatra 2014: Registration from March 1


Behind the discovery of the Holy Shrine lies an interesting story. Centuries ago Maa Parvati asked Shivji to let her know why and when he started wearing the beads of heads (Mund Mala), to which Bhole Shankar replied, “whenever you are born I add more heads to  my bead”. Parvati said, “I die again and again, but you are Immortal. Please tell me the reason behind this”. “Bhole Shankar replied that for this you will have to listen to the Amar Katha
With the Amarnath Yatra taking off from Jammu  and proceeding towards the Holy Cave via Baltal route only the next day, the pilgrims embarking on the arduous journey would be allowed to proceed beyond Domel only up to 9 a.m. each day.
Shiv agreed to narrate the detailed story to Maa Parvati. He started for a lonely place where no living being could listen to the immortal secret and ultimately chose Amarnath Cave. In the hush-hush, he left his Nandi (the Bull which He used to ride) at Pahalgam (Bail gaon). At Chandanwari, he released Moon (Chand) from his hairs (Jataon). At the banks of Lake Sheshnag, he released the snakes. He decided to leave his Son Ganesha at Mahagunas Parvat (Mahaganesh Hill). At Panjtarni, Shivji left the Five Elements behind (Earth, Water, Air, Fire and Sky) which give birth to life and of which he is the Lord.  After leaving behind all these, Bhole Shankar entered the Holy Amarnath Cave along with Parvati Maa and took his Samadhi. To ensure that no living being is able to hear the Immortal Tale, he created Kalagni and ordered him to spread fire to eliminate every living thing in and around the Holy Cave. After this he started narrating the secret of immortality to Maa Parvati. But as a matter of chance a pair of pigeons overhead the story  and   became immortal.
Holy Cave
Many pilgrims report seeing the pair of pigeons at the Holy Shrine even today and are amazed as to how these birds survive in such a cold and high altitude area.
Situated in a narrow gorge at the farther end of Lidder Valley, Amarnath Shrine stands at 3,888 m and is 46 Km from Pahalgam and 14 Kms from Baltal. Though the original pilgrimages subscribes that the yatra be undertaken from Srinagar, the more common practice is to begin journey at Chandanwari, and cover the distance to Amarnathji and back in five days. Pahalgam is 96 Kms from  Srinagar.
Amarnathji is considered to be one of the major Hindu Dhams. The holy cave is the abode of  Lord Shiva. The guardian of the absolute, Lord Shiva, the destroyer, is enshrined in the form of an ice-lingam in this cave. This lingam is formed naturally, which is believed to wax and wane with the moon.

Route Map
Registration of pilgrims for annual Amarnath yatra which would commence from 28 June 2014 will start from March 1, 2014.
Yatra will commence from both traditional Pahalgam and Baltal routes as per scheduled on 28 June 2014.



Swami Vivekananda Quotes About Faith

"Everything that is excellent will come when this sleeping soul is aroused to self conscious activity."-Swami Vivekananda
 
 "This life is short, the vanities of the world are transient, but they alone live who live for others, the rest are more dead than alive."-Swami Vivekananda
 
"I belong as much to India as to the world, no humbug about that. I have helped you all I could. You must now help yourselves. What country has any special claim on me?"-Swami Vivekananda.
 
 "If faith in ourselves had been more extensively taught and practiced, I am sure a very large portion of the evils and miseries that we have would have vanished." -Swami Vivekananda
 
"If faith in ourselves had been more extensively taught and practiced, I am sure a very large portion of the evils and miseries that we have would have vanished." -Swami Vivekananda
 
 
 

ईमानदारी की जीत

चारों ओर सुंदर वन में उदासी छाई हुई थी। वन को अज्ञात बीमारी ने घेर लिया था। वन के लगभग सभी जानवर इस बीमारी के कारण अपने परिवार का कोई न कोई सदस्य गवाँ चुके थे। बीमारी से मुकाबला करने के लिए सुंदर वन के राजा शेर सिंह ने एक बैठक बुलाई।

बैठक का नेतृत्व खुद शेर सिंह ने किया। बैठक में गज्जू हाथी, लंबू जिराफ, अकड़ू सांप, चिंपू बंदर, गिलू गिलहरी, कीनू खरगोश सहित सभी जंगलवासियों ने हिस्सा लिया। जब सभी जानवर इकठ्ठे हो गए, तो शेर सिंह एक ऊँचे पत्थर पर बैठ गया और जंगलवासियों को संबोधित करते हुए कहने लगा, "भाइयो, वन में बीमारी फैलने के कारण हम अपने कई साथियों को गवाँ चुके हैं। इसलिए हमें इस बीमारी से बचने के लिए वन में एक अस्पताल खोलना चाहिए, ताकि जंगल में ही बीमार जानवरों का इलाज किया जा सके।'

इस पर जंगलवासियों ने एतराज जताते हुए पूछा कि अस्पताल के लिए पैसा कहाँ से आएगा और अस्पताल में काम करने के लिए डॉक्टरों की जरूरत भी तो पड़ेगी? इस पर शेर सिंह ने कहा, यह पैसा हम सभी मिलकर इकठ्ठा करेंगे।

यह सुनकर कीनू खरगोश खड़ा हो गया और बोला, "महाराज! मेरे दो मित्र चंपकवन के अस्पताल में डॉक्टर हैं। मैं उन्हें अपने अस्पताल में ले आऊँगा।'

इस फैसले का सभी जंगलवासियों ने समर्थन किया। अगले दिन से ही गज्जू हाथी व लंबू जिराफ ने अस्पताल के लिए पैसा इकठ्ठा करना शुरू कर दिया।

जंगलवासियों की मेहनत रंग लाई और जल्दी ही वन में अस्पताल बन गया। कीनू खरगोश ने अपने दोनों डॉक्टर मित्रों वीनू खरगोश और चीनू खरगोश को अपने अस्पताल में बुला लिया।

राजा शेर सिंह ने तय किया कि अस्पताल का आधा खर्च वे स्वयं वहन करेंगे और आधा जंगलवासियों से इकठ्ठा किया जाएगा।

इस प्रकार वन में अस्पताल चलने लगा। धीरे-धीरे वन में फैली बीमारी पर काबू पा लिया गया। दोनों डॉक्टर अस्पताल में आने वाले मरीजों की पूरी सेवा करते और मरीज़ भी ठीक हो कर डाक्टरों को दुआएँ देते हुए जाते। कुछ समय तक सब कुछ ठीक ठाक चलता रहा। परंतु कुछ समय के बाद चीनू खरगोश के मन में लालच बढ़ने लगा। उसने वीनू खरगोश को अपने पास बुलाया और कहने लगा यदि वे दोनों मिल कर अस्पताल की दवाइयाँ दूसरे वन में बेचें तथा रात में जाकर दूसरे वन के मरीज़ों को देखें तो अच्छी कमाई कर सकते हें और इस बात का किसी को पता भी नहीं लगेगा।

वीनू खरगोश पूरी तरह से ईमानदार था, इसलिए उसे चीनू का प्रस्ताव पसंद नहीं आया और उसने चीनू को भी ऐसा न करने का सुझाव दिया। लेकिन चीनू कब मानने वाला था। उसके ऊपर तो लालच का भूत सवार था। उसने वीनू के सामने तो ईमानदारी से काम करने का नाटक किया। परंतु चोरी-छिपे बेइमानी पर उतर आया। वह जंगलवासियों की मेहनत से खरीदी गई दवाइयों को दूसरे जंगल में ले जाकर बेचने लगा तथा शाम को वहाँ के मरीजों का इलाज करके कमाई करने लगा।

धीरे-धीरे उसका लालच बढ़ता गया। अब वह अस्पताल के कम, दूसरे वन के मरीजों को ज्यादा देखता। इसके विपरीत, डॉक्टर वीनू अधिक ईमानदारी से काम करता। मरीज भी चीनू की अपेक्षा डॉक्टर वीनू के पास जाना अधिक पसंद करते। एक दिन सभी जानवर मिलकर राजा शेर सिंह के पास चीनू की शिकायत लेकर पहुँचे। उन्होंने चीनू खरगोश की कारगुजारियों से राजा को अवगत कराया और उसे दंड देने की माँग की। शेर सिंह ने उनकी बात ध्यान से सुनी और कहा कि सच्चाई अपनी आँखों से देखे बिना वे कोई निर्णय नहीं लेंगे। इसलिए वे पहले चीनू डॉक्टर की जांच कराएँगे, फिर अपना निर्णय देंगे। जांच का काम चालाक लोमड़ी को सौंपा गया, क्योंकि चीनू खरगोश लोमड़ी को नहीं जानता था।

लोमड़ी अगले ही दिन से चीनू के ऊपर नजर रखने लगी। कुछ दिन उस पर नज़र रखने के बाद लोमड़ी ने उसे रंगे हाथों पकड़ने की योजना बनाई। उसने इस योजना की सूचना शेर सिंह को भी दी, ताकि वे समय पर पहुँच कर सच्चाई अपनी आँखों से देख सकें। लोमड़ी डॉक्टर चीनू के कमरे में गई और कहा कि वह पास के जंगल से आई है। वहाँ के राजा काफी बीमार हैं, यदि वे तुम्हारी दवाई से ठीक हो गए, तो तुम्हें मालामाल कर देंगे। यह सुनकर चीनू को लालच आ गया। उसने अपना सारा सामान समेटा और लोमड़ी के साथ दूसरे वन के राजा को देखने के लिए चल पड़ा। शेर सिंह जो पास ही छिपकर सारी बातें सुन रहा था, दौड़कर दूसरे जंगल में घुस गया और निर्धारित स्थान पर जाकर लेट गया।

थोड़ी देर बाद लोमड़ी डॉक्टर चीनू को लेकर वहाँ पहुँची, जहाँ शेर सिंह मुँह ढँककर सो रहा था। जैसे ही चीनू ने राजा के मुँह से हाथ हटाया, वह शेर सिंह को वहाँ पाकर सकपका गया और डर से काँपने लगा। उसके हाथ से सारा सामान छूट गया, क्योंकि उसकी बेइमानी का सारा भेद खुल चुका था। तब तक सभी जानवर वहाँ आ गए थे। चीनू खरगोश हाथ जोड़कर अपनी कारगुजारियों की माफी माँगने लगा।

राजा शेर सिंह ने आदेश दिया कि चीनू की बेइमानी से कमाई हुई सारी संपत्ति अस्पताल में मिला ली जाए और उसे धक्के मारकर जंगल से बाहर निकाल दिया जाए। शेर सिंह के आदेशानुसार चीनू खरगोश को धक्के मारकर जंगल से बाहर निकाल दिया गया। इस कार्रवाई को देखकर जंगलवासियों ने जान लिया कि ईमानदारी की हमेशा जीत होती है।

ईमानदारी

विक्की अपने स्कूल में होने वाले स्वतंत्रता दिवस समारोह को ले कर बहुत उत्साहित था। वह भी परेड़ में हिस्सा ले रहा था।

दूसरे दिन वह एकदम सुबह जग गया लेकिन घर में अजीब सी शांति थी। वह दादी के कमरे में गया, लेकिन वह दिखाई नहीं पड़ी।
"माँ, दादीजी कहाँ हैं?" उसने पूछा।
"रात को वह बहुत बीमार हो गई थीं। तुम्हारे पिताजी उन्हें अस्पताल ले गए थे, वह अभी वहीं हैं उनकी हालत काफी खराब है।

विक्की एकाएक उदास हो गया।

उसकी माँ ने पूछा, "क्या तुम मेरे साथ दादी जी को देखने चलोगे? चार बजे मैं अस्पताल जा रही हूँ।"

विक्की अपनी दादी को बहुत प्यार करता था। उसने तुरंत कहा, "हाँ, मैं आप के साथ चलूँगा।" वह स्कूल और स्वतंत्रता दिवस के समारोह के बारे में सब कुछ भूल गया।

स्कूल में स्वतंत्रता दिवस समारोह बहुत अच्छी तरह संपन्न हो गया। लेकिन प्राचार्य खुश नहीं थे। उन्होंने ध्यान दिया कि बहुत से छात्र आज अनुपस्थित हैं।

उन्होंने दूसरे दिन सभी अध्यापकों को बुलाया और कहा, "मुझे उन विद्यार्थियों के नामों की सूची चाहिए जो समारोह के दिन अनुपस्थित थे।"

आधे घंटे के अंदर सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों की सूची उन की मेज पर थी। कक्षा छे की सूची बहुत लंबी थी। अत: वह पहले उसी तरफ मुड़े।

जैसे ही उन्होंने कक्षा छे में कदम रखे, वहाँ चुप्पी सी छा गई। उन्होंने कठोरतापूर्वक कहा, "मैंने परसों क्या कहा था?"
"यही कि हम सब को स्वतंत्रता दिवस समारोह में उपस्थित होना चाहिए," गोलमटोल उषा ने जवाब दिया।
"तब बहुत सारे बच्चे अनुपस्थित क्यों थे?" उन्होंने नामों की सूची हवा में हिलाते हुए पूछा।

फिर उन्होंने अनुपस्थित हुए विद्यार्थियों के नाम पुकारे, उन्हें डाँटा और अपने डंडे से उनकी हथेलियों पर मार लगाई।
"अगर तुम लोग राष्ट्रीय समारोह के प्रति इतने लापरवाह हो तो इसका मतलब यही है कि तुम लोगों को अपनी मातृभूमि से प्यार नहीं है। अगली बार अगर ऐसा हुआ तो मैं तुम सबके नाम स्कूल के रजिस्टर से काट दूँगा।"

इतना कह कर वह जाने के लिए मुड़े तभी विक्की आ कर उन के सामने खड़ा हो गया।

"क्या बात है?"
"महोदय, विक्की भयभीत पर दृढ़ था, मैं भी स्वतंत्रता दिवस समारोह में अनुपस्थित था, पर आप ने मेरा नाम नहीं पुकारा।" कहते हुए विक्की ने अपनी हथेलियाँ प्राचार्य महोदय के सामने फैला दी।

सारी कक्षा साँस रोक कर उसे देख रही थी।

प्राचार्य कई क्षणों तक उसे देखते रहे। उनका कठोर चेहरा नर्म हो गया और उन के स्वर में क्रोध गायब हो गया।
"तुम सजा के हकदार नहीं हो, क्योंकि तुम में सच्चाई कहने की हिम्मत है। मैं तुम से कारण नहीं पूछूँगा, लेकिन तुम्हें वचन देना होगा कि अगली बार राष्ट्रीय समारोह को नहीं भूलोगे। अब तुम अपनी सीट पर जाओ।

विक्की ने जो कुछ किया, इसकी उसे बहुत खुशी थी।

चालाकी का फल

एक थी बुढ़िया, बेहद बूढ़ी पूरे नब्बे साल की। एक तो बेचारी को ठीक से दिखाई नहीं पड़ता था ऊपर से उसकी मुर्गियाँ चराने वाली लड़की नौकरी छोड़ कर भाग गयी।

बेचारी बुढ़िया! सुबह मुर्गियों को चराने के लिये खोलती तो वे पंख फड़फड़ाती हुई सारी की सारी बुढिया के घर की चारदीवारी फाँद कर अड़ोस पड़ोस के घरों में भाग जातीं और 'कों कों कुड़कुड़' करती हुई सारे मोहल्ले में हल्ला मचाती हुई घूमतीं। कभी वे पड़ोसियों की सब्जियाँ खा जातीं तो कभी पड़ोसी काट कर उन्हीं की सब्जी बना डालते। दोनों ही हालतों में नुकसान बेचारी बुढ़िया का होता। जिसकी सब्जी बरबाद होती वह बुढ़िया को भला बुरा कहता और जिसके घर में मुर्गी पकती उससे बुढ़िया की हमेशा की दुश्मनी हो जाती।

हार कर बुढ़िया ने सोचा कि बिना नौकर के मुर्गियाँ पालना उसकी जैसी कमज़ोर बुढ़िया के बस की बात नहीं। भला वो कहाँ तक डंडा लेकर एक एक मुर्गी हाँकती फिरे? ज़रा सा काम करने में ही तो उसका दम फूल जाता था। और बुढ़िया निकल पड़ी लाठी टेकती नौकर की तलाश में।

पहले तो उसने अपनी पुरानी मुर्गियाँ चराने वाली लड़की को ढूँढा। लेकिन उसका कहीं पता नहीं लगा। यहाँ तक कि उसके माँ बाप को भी नहीं मालूम था कि लड़की आखिर गयी तो गयी कहाँ? "नालायक और दुष्ट लड़की! कहीं ऐसे भी भागा जाता है? न अता न पता सबको परेशान कर के रख दिया।" बुढ़िया बड़बड़ायी और आगे बढ़ गयी।
थोड़ी दूर पर एक भालू ने बुढ़िया को बड़बड़ाते हुए सुना तो वह घूम कर सड़क पर आ गया और बुढ़िया को रोक कर बोला, " गु र्र र , बुढ़िया नानी नमस्कार! आज सुबह सुबह कहाँ जा रही हो? सुना है तुम्हारी मुर्गियाँ चराने वाली लड़की नौकरी छोड़ कर भाग गयी है। न हो तो मुझे ही नौकर रख लो। खूब देखभाल करूँगा तुम्हारी मुर्गियों की।"

"अरे हट्टो, तुम भी क्या बात करते हो? बुढ़िया ने खिसिया कर उत्तर दिया, " एक तो निरे काले मोटे बदसूरत हो मुर्गियाँ तो तुम्हारी सूरत देखते ही भाग खड़ी होंगी। फिर तुम्हारी बेसुरी आवाज़ उनके कानों में पड़ी तो वे मुड़कर दड़बे की ओर आएँगी भी नहीं। एक तो मुर्गियों के कारण मुहल्ले भर से मेरी दुश्मनी हो गयी है, दूसरा तुम्हारे जैसा जंगली जानवर और पाल लूँ तो मेरा जीना भी मुश्किल हो जाए। छोड़ो मेरा रास्ता मैं खुद ही ढूँढ लूँगी अपने काम की नौकरानी।"

बुढ़िया आगे बढ़ी तो थोड़ी ही दूर पर एक सियार मिला और बोला, "हुआँ हुआँ राम राम बुढ़िया नानी किसे खोज रही हो? बुढ़िया खिसिया कर बोली, अरे खोज रहीं हूँ एक भली सी नौकरानी जो मेरी मुर्गियों की देखभाल कर सके। देखो भला मेरी पुरानी नौकरानी इतनी दुष्ट छोरी निकली कि बिना बताए कहीं भाग गयी अब मैं मुर्गियों की देखभाल कैसे करूँ? कोई कायदे की लड़की बताओ जो सौ तक गिनती गिन सके ताकि मेरी सौ मुर्गियों को गिन कर दड़बे में बन्द कर सकें।"

यह सुन कर सियार बोला, "हुआँ हुआँ, बुढ़िया नानी ये कौन सी बड़ी बात है? चलो अभी मैं तुम्हें एक लड़की से मिलवाता हूँ। मेरे पड़ोस में ही रहती है। रोज़ जंगल के स्कूल में पढ़ने जाती है इस लिये सौ तक गिनती उसे जरूर आती होगी। अकल भी उसकी खूब अच्छी है। शेर की मौसी है वो, आओ तुम्हें मिलवा ही दूँ उससे।
बुढ़िया लड़की की तारीफ सुन कर बड़ी खुश होकर बोली, "जुग जुग जियो बेटा, जल्दी बुलाओ उसे कामकाज समझा दूँ। अब मेरा सारा झंझट दूर हो जाएगा। लड़की मुर्गियों की देखभाल करेगी और मैं आराम से बैठकर मक्खन बिलोया करूँगी।"

सियार भाग कर गया और अपने पड़ोस में रहने वाली चालाक पूसी बिल्ली को साथ लेकर लौटा। पूसी बिल्ली बुढ़िया को देखते ही बोली, "म्याऊँ, बुढ़िया नानी नमस्ते। मैं कैसी रहूँगी तुम्हारी नौकरानी के काम के लिये?" नौकरानी के लिये लड़की जगह बिल्ली को देखकर बुढ़िया चौंक गयी। बिगड़ कर बोली, "हे भगवान कहीं जानवर भी घरों में नौकर हुआ करते हैं? तुम्हें तो अपना काम भी सलीके से करना नहीं आता होगा। तुम मेरा काम क्या करोगी?"

लेकिन पूसी बिल्ली बड़ी चालाक थी। आवाज को मीठी बना कर मुस्कुरा कर बोली, "अरे बुढ़िया नानी तुम तो बेकार ही परेशान होती हो। कोई खाना पकाने का काम तो है नहीं जो मैं न कर सकँू। आखिर मुर्गियों की ही देखभाल करनी है न? वो तो मैं खूब अच्छी तरह कर लेती हूँ। मेरी माँ ने तो खुद ही मुर्गियाँ पाल रखी हैं। पूरी सौ हैं। गिनकर मैं ही चराती हूँ और मैं ही गिनकर बन्द करती हूँ। विश्वास न हो तो मेरे घर चलकर देख लो।"

एक तो पूसी बिल्ली बड़ी अच्छी तरह बात कर रही थी और दूसरे बुढ़िया काफी थक भी गयी थी इसलिये उसने ज्यादा बहस नहीं की और पूसी बिल्ली को नौकरी पर रख लिया।

पूसी बिल्ली ने पहले दिन मुर्गियों को दड़बे में से निकाला और खूब भाग दौड़ कर पड़ोस में जाने से रोका। बुढ़िया पूसी बिल्ली की इस भाग-दौड़ से संतुष्ट होकर घर के भीतर आराम करने चली गयी। कई दिनों से दौड़ते भागते बेचारी काफी थक गयी थी तो उसे नींद भी आ गयी।

इधर पूसी बिल्ली ने मौका देखकर पहले ही दिन छे मुर्गियों को मारा और चट कर गयी। बुढ़िया जब शाम को जागी तो उसे पूसी की इस हरकत का कुछ भी पता न लगा। एक तो उसे ठीक से दिखाई नहीं देता था और उसे सौ तक गिनती भी नहीं आती थी। फिर भला वह इतनी चालाक पूसी बिल्ली की शरारत कैसे जान पाती?

अपनी मीठी मीठी बातोंसे बुढ़िया को खुश रखती और आराम से मुर्गियाँ चट करती जाती। पड़ोसियों से अब बुढ़िया की लड़ाई नहीं होती थी क्योंकि मुर्गियाँ अब उनके आहाते में घुस कर शोरगुल नहीं करती थीं। बुढ़िया को पूसी बिल्ली पर इतना विश्वास हो गया कि उसने मुर्गियों के दड़बे की तरफ जाना छोड़ दिया।

धीरे धीरे एक दिन ऐसा आया जब दड़बे में बीस पच्चीस मुर्गियाँ ही बचीं। उसी समय बुढ़िया भी टहलती हुई उधर ही आ निकली। इतनी क़म मुर्गियाँ देखकर उसने पूसी बिल्ली से पूछा, "क्यों री पूसी, बाकी मुर्गियों को तूने चरने के लिये कहाँ भेज दिया?" पूसी बिल्ली ने झट से बात बनाई, " अरे और कहाँ भेजँूगी बुढ़िया नानी। सब पहाड़ के ऊपर चली गयी हैं। मैंने बहुत बुलाया लेकिन वे इतनी शरारती हैं कि वापस आती ही नहीं।"

"ओफ् ओफ् ! ये शरारती मुर्गियाँ।" बुढ़िया का बड़बड़ाना फिर शुरू हो गया, "अभी जाकर देखती हूँ कि ये इतनी ढीठ कैसे हो गयी हैं? पहाड़ के ऊपर खुले में घूम रही हैं। कहीं कोई शेर या भेड़िया आ ले गया तो बस!"

ऊपर पहुँच कर बुढ़िया को मुर्गियाँ तो नहीं मिलीं। मिलीं सिर्फ उनकी हडि्डयाँ और पंखों का ढ़ेर! बुढ़िया को समझते देर न लगी कि यह सारी करतूत पूसी बिल्ली की है। वो तेजी से नीचे घर की ओर लौटी।

इधर पूसी बिल्ली ने सोचा कि बुढ़िया तो पहाड़ पर गयी अब वहाँ सिर पकड़ कर रोएगी जल्दी आएगी नहीं। तब तक क्यों न मैं बची-बचाई मुर्गियाँ भी चट कर लूँ? यह सोच कर उसने बाकी मुर्गियों को भी मार डाला। अभी वह बैठी उन्हें खा ही रही थी कि बुढ़िया वापस लौट आई।

पूसी बिल्ली को मुर्गियाँ खाते देखकर वह गुस्से से आग बबूला हो गयी और उसने पास पड़ी कोयलों की टोकरी उठा कर पूसी के सिर पर दे मारी। पूसी बिल्ली को चोट तो लगी ही, उसका चमकीला सफेद रंग भी काला हो गया। अपनी बदसूरती को देखकर वह रोने लगी।

आज भी लोग इस घटना को नही भूले हैं और रोती हुई काली बिल्ली को डंडा लेकर भगाते हैं। चालाकी का उपयोग बुरे कामों में करने वालों को पूसी बिल्ली जैसा फल भोगना पड़ता है।

Wednesday 9 July 2014

Shravan Maas Dates : Sun, 13 July 2014 to Sun, 10 August 2014

Shravan Maas Dates : Sun, 13 July 2014 to Sun, 10 August 2014

Shavan First Monday : 14 July 2014

The month of Shravan is the fifth month of the Hindu calender beginning from Chaitra, and is the most auspicious month of the Chaturmas. On Purnima or fullmoon day, or during the course of the month the star ‘Shravan’ rules the sky, hence the month is called Shavan. This month is spread out with innumerably religious festivals and ceremonies and almost all the days of this month are auspicious.
Shravan Month श्रावण मासमें आशुतोष भगवान्‌ शंकरकी पूजाका विशेष महत्व है। जो प्रतिदिन पूजन न कर सकें उन्हें सोमवारको शिवपूजा अवश्य करनी चाहिये और व्रत रखना चाहिये। सोमवार भगवान्‌ शंकरका प्रिय दिन है, अत: सोमवारको शिवाराधन करना चाहिये।
श्रावणमें पार्थिव शिवपूजाका विशेष महत्व है। अत: प्रतिदिन अथवा प्रति सोमवार तथा प्रदोषको शिवपूजा या पार्थिव शिवपूजा अवश्य करनी चाहिये।
सोमवार (Shravan Somvar) के व्रत के दिन प्रातःकाल ही स्नान ध्यान के उपरांत मंदिर देवालय या घर पर श्री गणेश जी की पूजा के साथ शिव-पार्वती और नंदी की पूजा की जाती है। इस दिन प्रसाद के रूप में जल  ,  दूध  ,  दही  ,  शहद  ,  घी  ,  चीनी  ,  जने‌ऊ  ,  चंदन  ,  रोली  ,  बेल पत्र  ,  भांग  ,  धतूरा  ,  धूप  ,  दीप और दक्षिणा के साथ ही नंदी के लि‌ए चारा या आटे की पिन्नी बनाकर भगवान पशुपतिनाथ का पूजन किया जाता है। रात्रिकाल में घी और कपूर सहित गुगल, धूप की आरती करके शिव महिमा का गुणगान किया जाता है। लगभग श्रावण मास के सभी सोमवारों को यही प्रक्रिया अपना‌ई जाती है।
इस मासमें लघुरुद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र पाठ करानेका भी विधान है।
इस मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामूठ च़ढ़ा‌ई जाती है। वह क्रमशः इस प्रकार है :
प्रथम सोमवार को- कच्चे चावल एक मुट्ठी, दूसरे सोमवार को- सफेद तिल्ली एक मुट्ठी, तीसरे सोमवार को- ख़ड़े मूँग एक मुट्ठी, चौथे सोमवार को- जौ एक मुट्ठी और यदि पाँचवाँ सोमवार आ‌ए तो एक मुट्ठी सत्तू च़ढ़ाया जाता है।
शिव की पूजा में बिल्वपत्र (Belpatra) अधिक महत्व रखता है। शिव द्वारा विषपान करने के कारण शिव के मस्तक पर जल की धारा से जलाभिषेक शिव भक्तों द्वारा किया जाता है। शिव भोलेनाथ ने गंगा को शिरोधार्य किया है।
एक कथा के अनुसार श्रीविष्णु पत्नी लक्ष्मी ने शंकर के प्रिय श्रावण माह में शिवलिंग पर प्रतिदिन 1001 सफेद कमल अर्पण करने का निश्चय किया। स्वर्ण तश्तरी में उन्होंने गिनती के कमल रखे, लेकिन मंदिर पहुँचने पर तीन कमल अपने आप कम हो जाते थे। सो मंदिर पहुँचकर उन्होंने उन कमलों पर जल छींटा, तब उसमें से एक पौधे का निर्माण हु‌आ। इस पर त्रिदल ऐसे हजारों पत्ते थे, जिन्हें तोड़कर लक्ष्मी शिवलिंग पर चढ़ाने लगीं, सो त्रिदल के कम होने का तो सवाल ही खत्म हो गया।
और लक्ष्मी ने भक्ति के सामर्थ्य पर निर्माण कि‌ए बिल्वपत्र शिव को प्रिय हो ग‌ए। लक्ष्मी यानी धन-वैभव, जो कभी बासी नहीं होता। यही वजह है कि लक्ष्मी द्वारा पैदा किया गया बिल्वपत्र भी वैसा ही है। ताजा बिल्वपत्र न मिलने की दशा में शिव को अर्पित बिल्वपत्र पुनः चढ़ाया जा सकता है। बिल्वपत्र का वृक्ष प्रकृति का मनुष्य को दिया वरदान है।
सुहागन स्त्रियों को इस दिन व्रत रखने से अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है। विद्यार्थियों को सोमवार का व्रत रखने से और शिव मंदिर में जलाभिषेक करने से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है। बेरोजगार और अकर्मण्य जातकों को रोजगार तथा काम मिलने से मानप्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। सदगृहस्थ नौकरी पेशा या व्यापारी को श्रावण के सोमवार व्रत करने से धन धान्य और लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
वहीं भगवान श्री कृष्‍ण के वृन्‍दावन में भी सावन के महीने में बहारें छायीं रहेंगीं, जहॉं झूलों और रास लीला‌ओं का परम्‍परागत उत्‍सव रहेगा वहीं कृष्‍ण साधना और कृष्‍ण पूजा भी इन दिनों भारी संख्‍या में होगी ।
सावन (shavan) के पूरे महीने जहॉं शिव और कृष्‍ण की पूजा और साधना परम्‍परा चलेगी वहीं शिवालय और कृष्‍ण मन्दिर इन दिनों लोगों के मेलों से घिरे रहेंगे ।
आज भी उत्तर भारत में कांवड़ परम्परा का बोलबाला है। श्रद्धालु गंगाजल लाने के लि‌ए हरिद्वार  ,  गढ़ गंगा और प्रयाग जैसे तीर्थो में जाकर जलाभिषेक करने हेतु कांवड़ लेकर आते हैं। यह सब साधन शिवजी की कृपा प्राप्त करने के लि‌ए है।

Guru (Vyasa) Poornima

THE FULL moon day in the month of Ashad (July-August) is an extremely auspicious and holy day of Guru Purnima. On this day, sacred to the memory of the great sage, Bhagavan Sri Vyasa, Sannyasins settle at some place to study and discourse on the thrice-blessed Brahma Sutras composed by Maharishi Vyasa, and engage themselves in Vedantic, philosophical investigation.Sri Vyasa has done unforgettable service to humanity for all times by editing the four Vedas,writing the eighteen Puranas, the Mahabharata and the Srimad Bhagavata. We can only repay the deep debt of gratitude we owe him, by constant study of his works and practice of his teachings imparted for the regeneration of humanity in this iron age. In honour of this divine personage, all spiritual aspirants and devotees perform Vyasa Puja on this day, and disciples worship their spiritual preceptor. Saints, monks and men of God are honoured and entertained with acts of charity by all the householders with deep faith and sincerity.

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्‍वरः ।
गुरु साक्षात्‌ परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः ॥

The period Chaturmas (the “four months”) begins from this day; Sannyasins stay at one place during the ensuing four rainy months,engaging in the study of the Brahma Sutras and the practice of meditation.
Live on milk and fruit on this day and practise rigorous Japa and meditation. Study the Brahma Sutras and do Japa of your Guru Mantra, during the four months following the Guru Purnima. You will be highly benefited.
The Srutis say: “To that high-souled aspirant, whose devotion to the Lord is great and whose devotion to his Guru is as great as that to the Lord,the secrets explained herein become illuminated”.
Guru is Brahman, the Absolute, or God Himself. He guides and inspires you from the innermost core of your being. He is everywhere. Have a new angle of vision. Behold the entire universe as the form of the Guru. See the guiding hand, the awakening voice, the illuminating touch of the Guru in every object in this creation. The whole world will now stand transformed before your changed vision. The world as Guru will reveal all the precious secrets of life to you, and bestow wisdom upon you. The supreme Guru, as manifested in visible nature, will teach you the most valuable lessons of life. Worship daily this Guru of Gurus, the Guru who taught even the Avadhuta Dattatreya.
Dattatreya, regarded as God and the Guru of Gurus, considered Nature Herself as His Guru, and learnt a number of lessons from Her twenty-four creatures, and hence he is said to have had twenty-four Gurus.
Remember and adore Sri Vyasa and the Gurus who are fully established in knowledge of the Self. May their blessings be upon you! May you cut asunder the knot of ignorance and shine as blessed sages shedding peace, joy and light everywhere !
A Great Bhajan Stuti

गुरु मेरी पूजा, गुरु गोविन्द; गुरु मेरा पार ब्रह्म, गुरु भगवन्त्‌ ।

After bath, worship the lotus feet of your Guru, or his image or picture with flowers, fruits, incense and camphor.
Fast or take only milk and fruits the whole day. In the afternoon, sit with other devotees of your Guru and discuss with them the glories and teachings of your Guru.
Alternatively, you may observe the vow of silence and study the books or writings of your Guru, or mentally reflect upon his teachings. Take fresh resolves on this holy day, to tread the spiritual path in accordance with the precepts of your Guru. At night, assemble again with other devotees, and sing the Names of the Lord and the glories of your Guru.
The best form of worship of the Guru is to follow his teachings, to shine as the very embodiment of his teachings, and to propagate his gloryand his message.

Maha Shivaratri Katha: The Story Of King Chitrabhanu

The story (Vrat Katha) goes as follows….
Once upon a time King Chitrabhanu of the Ikshvaku dynasty, who ruled over the whole of Jambudvipa, was observing a fast with his wife, it being the day of Maha Shivaratri.
The Sage Ashtavakra came on a visit to the court of the king.
The sage asked, “O king! why are you observing a fast today?”
King Chitrabhanu explained why. He had the gift of remembering the incidents of his previous birth.
The king said to the sage: “In my past birth I was a hunter in Varanasi. My name was Suswara. My livelihood was to kill and sell birds and animals. One day I was roaming the forests in search of animals. I was overtaken by the darkness of night. Unable to return home, I climbed a tree for shelter. It happened to be a bael tree. I had shot a deer that day but I had no time to take it home. I bundled it up and tied it to a branch on the tree. As I was tormented by hunger and thirst, I kept awake throughout the night. I shed profuse tears when I thought of my poor wife and children who were starving and anxiously awaiting my return. To pass away the time that night I engaged myself in plucking the bael leaves and dropping them down onto the ground. “The day dawned. I returned home and sold the deer. I bought some food for myself and for my family. I was about to break my fast when a stranger came to me, begging for food. I served him first and then took my food.
“At the time of death, I saw two messengers of Lord Shiva. They were sent down to conduct my soul to the abode of Lord Shiva. I learnt then for the first time of the great merit I had earned by the unconscious worship of Lord Shiva during the night of Shivaratri. They told me that there was a Lingam at the bottom of the tree. The leaves I dropped fell on the Lingam. My tears which I had shed out of pure sorrow for my family fell onto the Lingam and washed it. And I had fasted all day and all night. Thus did I unconsciously worship the Lord. “I lived in the abode of the Lord and enjoyed divine bliss for long ages. I am now reborn as Chitrabhanu.”

“Om Namah Shivaya”