Thursday, 31 July 2014

MERA BHARAT MAHAN BHARAT (CHHOTI SI BATE)

ए  मेंरा भारत देश  सदीयोसे महान हे और महान रहेंगा , लेकिन हमारी सोटी गलतियों के कारन ज्यादा मुश्किल पड़ती हे , हम भारत वासी पुरे विस्व को हिला सकते हे , इस  कोई राय नहीं हे , हमें छोटी बातो को ध्यान देना पड़ेंगा , हमें ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने पड़ेंगे , हम गाव  वालो को इ कदम उठाना होगा ,



जय भारत

Jai Badrinath – Mythology

Jai Badrinath – Mythology

बद्रीनाथ का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। स्कंद पुराण के अनुसार जब भगवान शिव से बद्रीनाथ के उद्गम के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह शाश्वत है जिसकी को‌ई शुरू‌आत नहीं। इस क्षेत्र के स्वामी स्वयं नारायण हैं। जब ईश्वर चिरंतर है तो उसके नाम, छवि, जीवन तथा आवास सभी चिरंतर ही है। समयानुसार केवल पूजा का रूप एवं नाम ही बदलता है। स्कंद पुराण में भी वर्णन है कि सतयुग में इस स्थल को मुक्तिप्रद कहा गया, त्रेता युग में इसे भोग सिद्धिदा कहा गया, द्वापर युग में इसे विशाल नाम दिया गया तथा कलयुग में इसे बद्रिकाश्रम कहा गया। महाभारत महाकाव्य की रचना पास ही माणा गांव में व्यास एवं गणेश गुफा‌ओं में की गयी।

माना जाता है कि एक दिन भगवान विष्णु शेष शय्या पर लेटे हु‌ए थे तथा उनकी पत्नी भगवती लक्ष्मी उनके पैर दबा रही थी, उसी समय ज्ञानी मुनि नारद उधर से गुजरे तथा उस शुभ दृश्य को देखकर विष्णु को सांसारिक आराम के लि‌ए फटकारा। भयभीत होकर विष्णु ने लक्ष्मी को नाग कन्या‌ओं के पास भेज दिया तथा स्वयं एक घाटी में हिमालयी निर्जनता में गायब हो गये जहां जंगली बेरियां (बद्री) थी जिसे वे खाकर रहते। एक योग ध्यान मुद्रा में वे क‌ई वर्षों तक तप करते रहे। लक्ष्मी वापस आयी और उन्हें नहीं पाकर उनकी खोज में निकल पड़ी। अंत में वह बद्रीवन पहुंची तथा विष्णु से प्रार्थना की कि वे योगध्यानी मुद्रा का त्याग कर मूल ऋंगारिक स्वरूप में आ जाये। इसके लि‌ए विष्णु सहमत हो गये लेकिन इस शर्त्त पर कि बद्रीवन की घाटी तप की घाटी बनी रहे न कि सांसारिक आनंद का और यह कि योगध्यानी मुद्रा तथा ऋंगारिक स्वरूप दोनों में उनकी पूजा की जाय। प्रथम मुद्रा में लक्ष्मी उनकी बांयी तरफ बैठी थी एवं दूसरे स्वरूप में लक्ष्मी उनकी दायीं ओर बैठी थी फलस्वरूप उन दोनों की पूजा एक दैवी जोड़े के रूप में होती है तथा व्यक्तिगत प्रतिमा‌ओं की तरह भी जिनके बीच को‌ई वैवाहिक संबंध नहीं होता क्योंकि परंपरानुसार पत्नी, पति के बायीं ओर बैठती है। यही कारण है कि रावल या प्रधान पुजारी को केवल केरल का नंबूद्रि ब्राह्मण लेकिन एक ब्रह्मचारी भी होना चाहि‌ए। योगध्यानी की तीन शर्तों का कठोर पालन किया गया है। गर्मी में तीर्थयात्रियों द्वारा विष्णु के ऋंगारिक रूप की पूजा की जाती है तथा जाड़े में उनके योग ध्यानी मुद्रा की पूजा देवी-देवता‌ओं तथा संतों द्वारा की जाती है।
इसी किंवदन्ती का दूसरा विचार यह है कि भगवान विष्णु ने अपने घर Baikunth का त्याग कर दिया। सांसारिक भोगों की भर्त्सना की तथा नर और नारायण के रूप में तप करने बद्रीनाथ आ गये। उनके साथ नारद भी आये। उन्होंने आशा की कि मानव उनके उदाहरण से प्रेरणा ग्रहण करेगा। ऐसा ही हु‌आ, देवों, संतों, मुनियों तथा साधारण लोगों ने यहां पहुंचने का जोखिम मात्र भगवान विष्णु का दर्शन पाने के लि‌ए उठाया। इस प्रकार भगवान को द्वापर युग आने तक अपने सही रूप में देखा गया जब नर और नारायण के रूप में उनका अवतार कृष्ण और अर्जन के रूप में हु‌आ (महाभारत)।
कलयुग में भगवान विष्णु बद्रीवन से गायब हो गये क्योंकि उन्हें भान हु‌आ कि मानव बहुत भौतिकवादी हो गया है तथा उसका ह्दय कठोर हो गया है। देवगण एवं मुनि भगवान का दर्शन नहीं पाकर परेशान हु‌ए तथा ब्रह्मदेव के पास गये जो भगवान विष्णु के बारे में कुछ नहीं जानते थे कि वे कहां हैं। उसके बाद वे भगवान शिव के पास गये और फिर उनके साथ बैकुंठ गये। यहां उन्हें यह आकाशवाणी सुना‌ई पड़ी कि भगवान विष्णु की मूर्त्ति बद्रीनाथ के नारदकुंड में पायी जा सकती है तथा इसे स्थापित किया जाना चाहिये ताकि लोग इसकी पूजा कर सके। देववाणी के अनुसार 6,500 वर्ष पहले मंदिर का निर्माण स्वयं ब्रह्मदेव द्वारा किया गया तथा विष्णु की मूर्त्ति, ब्रह्मांड के सृजक विश्वकर्मा द्वारा बनायी गयी। जब विधर्मियों द्वारा मंदिर पर हमला हु‌आ तथा देवों को भान हु‌आ कि वे भगवान की प्रतिमा को अशुद्ध होने से नही बचा सकते तब उन्होंने फिर से इस प्रतिमा को नारदकुंड में डाल दिया। फिर भगवान शिव से पूछा गया कि भगवान विष्णु कहां गायब हो गये तो उन्होंने बताया कि वे स्वयं आदि शंकराचार्य के रूप में अवतरित होकर मंदिर की पुनर्स्थापना करेंगे इसलि‌ए यह शंकराचार्य जो केरल के एक गांव में पैदा हु‌ए और 12 वर्ष की उम्र में अपनी दिव्य दृष्टि से बद्रीनाथ की यात्रा की। उन्होंने भगवान विष्णु की मूर्त्ति को फिर से लाकर मंदिर में स्थापित कर दिया। कुछ लोगों का विश्वास है कि मूर्त्ति बुद्ध की है तथा हिंदू दर्शन के अनुसार बुद्ध, विष्णु का नवां अवतार है और इस तरह यह बद्रीनाथ का दूसरा रूप समझा जा सकता है।
अपने हिन्दुत्व पुनरूत्थान कार्यक्रम में जब आदि शंकराचार्य बद्रीनाथ धाम गये तो वहां उन्हें पास के नारदकुंड के जल के नीचे वह प्रतिमा मिली जिसे बौद्धों के वर्चस्व काल में छिपा दिया गया था। उन्होंने इसकी पुर्नस्थापना की। आदि शंकराचार्य ने महसूस किया कि केवल शुद्ध आर्य ब्राह्मणों ने उत्तरी भारत के मैदानों में अपना आवास बना लिया तथा इसमें से कुछ शुद्ध आर्य ब्राह्मण केरल चल गये, जहां अपने नश्ल की शुद्धता बनाये रखने के लि‌ए उन्होंने कठोर सामाजिक नियम बना लिये। शंकराचार्य के समय के दौरान आर्य यहां 2,700 वर्ष से रह रहे थे तथा वे यहां के स्थानीय लोगों के साथ घुल-मिल गये एवं एक-दूसरे के साथ विवाह कर लिया। बौद्धों ने ब्राह्मण-धर्म तथा संस्कृत भाषा को लुप्तप्राय कर दिया पर थोड़े-से आर्य ब्राह्मण, Nambudripad ने, जो केरल के दक्षिण जा बसे थे, अपनी जाति की संपूर्ण, शुद्धता तथा धर्म को बचाये रखा। इस महान सुधारक ने अनुभव किया कि मात्र नम्बूद्रिपादों को ही भगवान बद्रीनाथ की सेवा करने का सम्मान मिलना चाहि‌ए। उनका आदेश आज भी माना जाता है, मुख्य पुजारी सदैव केरल का एक नम्बूद्रिपाद ब्राह्मण ही होता है, जहां यह समुदाय, निकट से जड़ित आज भी परिवार ऋंखला में सामाजिक व्यवहारों में तथा विवाह-नियमों में वही पुराने कठोर नियमों को बनाये हु‌ए हैं।

Sri Krishna Janmashtami 2014 – Vrat and Puja Date


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Sri Krishna Janmashtami 2014
Sun, 17 August 2014 (सप्तमी युक्त अष्टमी)
Mon, 18 August 2014 (ISKCON) 
श्रीमद्भागवत , भविष्यपुराण, अग्नि आदि पुराणों के अनुसार  भगवान् श्रीकृष्ण (Lord Krishna) का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी , बुधवार , रोहिणी नक्षत्र एवं वृष के चन्द्रमा कालीन अर्धरात्रि के समय हुआ था |
ऋषि व्यास , नारद आदि ऋषियों के मतानुसार सप्तमी युक्त अष्टमी ही व्रत , पूजन आदि हेतु ग्रहण करनी चाहिए |
वैष्णव संप्रदाय के अधिकाँश लोग उदयकालिक नवमी युता श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को ग्रहण करते हैं | 
Jai Shri Krishna

Shravan Maas 2014: श्रावण शिवाराधन


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Shravan Maas Dates : Sun, 13 July 2014 to Sun, 10 August 2014

Shavan First Monday : 14 July 2014
The month of Shravan is the fifth month of the Hindu calender beginning from Chaitra, and is the most auspicious month of the Chaturmas. On Purnima or fullmoon day, or during the course of the month the star ‘Shravan’ rules the sky, hence the month is called Shavan. This month is spread out with innumerably religious festivals and ceremonies and almost all the days of this month are auspicious.
Shravan Month श्रावण मासमें आशुतोष भगवान्‌ शंकरकी पूजाका विशेष महत्व है। जो प्रतिदिन पूजन न कर सकें उन्हें सोमवारको शिवपूजा अवश्य करनी चाहिये और व्रत रखना चाहिये। सोमवार भगवान्‌ शंकरका प्रिय दिन है, अत: सोमवारको शिवाराधन करना चाहिये।
श्रावणमें पार्थिव शिवपूजाका विशेष महत्व है। अत: प्रतिदिन अथवा प्रति सोमवार तथा प्रदोषको शिवपूजा या पार्थिव शिवपूजा अवश्य करनी चाहिये।
सोमवार (Shravan Somvar) के व्रत के दिन प्रातःकाल ही स्नान ध्यान के उपरांत मंदिर देवालय या घर पर श्री गणेश जी की पूजा के साथ शिव-पार्वती और नंदी की पूजा की जाती है। इस दिन प्रसाद के रूप में जल  ,  दूध  ,  दही  ,  शहद  ,  घी  ,  चीनी  ,  जने‌ऊ  ,  चंदन  ,  रोली  ,  बेल पत्र  ,  भांग  ,  धतूरा  ,  धूप  ,  दीप और दक्षिणा के साथ ही नंदी के लि‌ए चारा या आटे की पिन्नी बनाकर भगवान पशुपतिनाथ का पूजन किया जाता है। रात्रिकाल में घी और कपूर सहित गुगल, धूप की आरती करके शिव महिमा का गुणगान किया जाता है। लगभग श्रावण मास के सभी सोमवारों को यही प्रक्रिया अपना‌ई जाती है।
इस मासमें लघुरुद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र पाठ करानेका भी विधान है।
इस मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामूठ च़ढ़ा‌ई जाती है। वह क्रमशः इस प्रकार है :
प्रथम सोमवार को- कच्चे चावल एक मुट्ठी, दूसरे सोमवार को- सफेद तिल्ली एक मुट्ठी, तीसरे सोमवार को- ख़ड़े मूँग एक मुट्ठी, चौथे सोमवार को- जौ एक मुट्ठी और यदि पाँचवाँ सोमवार आ‌ए तो एक मुट्ठी सत्तू च़ढ़ाया जाता है।
शिव की पूजा में बिल्वपत्र (Belpatra) अधिक महत्व रखता है। शिव द्वारा विषपान करने के कारण शिव के मस्तक पर जल की धारा से जलाभिषेक शिव भक्तों द्वारा किया जाता है। शिव भोलेनाथ ने गंगा को शिरोधार्य किया है।
एक कथा के अनुसार श्रीविष्णु पत्नी लक्ष्मी ने शंकर के प्रिय श्रावण माह में शिवलिंग पर प्रतिदिन 1001 सफेद कमल अर्पण करने का निश्चय किया। स्वर्ण तश्तरी में उन्होंने गिनती के कमल रखे, लेकिन मंदिर पहुँचने पर तीन कमल अपने आप कम हो जाते थे। सो मंदिर पहुँचकर उन्होंने उन कमलों पर जल छींटा, तब उसमें से एक पौधे का निर्माण हु‌आ। इस पर त्रिदल ऐसे हजारों पत्ते थे, जिन्हें तोड़कर लक्ष्मी शिवलिंग पर चढ़ाने लगीं, सो त्रिदल के कम होने का तो सवाल ही खत्म हो गया।
और लक्ष्मी ने भक्ति के सामर्थ्य पर निर्माण कि‌ए बिल्वपत्र शिव को प्रिय हो ग‌ए। लक्ष्मी यानी धन-वैभव, जो कभी बासी नहीं होता। यही वजह है कि लक्ष्मी द्वारा पैदा किया गया बिल्वपत्र भी वैसा ही है। ताजा बिल्वपत्र न मिलने की दशा में शिव को अर्पित बिल्वपत्र पुनः चढ़ाया जा सकता है। बिल्वपत्र का वृक्ष प्रकृति का मनुष्य को दिया वरदान है।
सुहागन स्त्रियों को इस दिन व्रत रखने से अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है। विद्यार्थियों को सोमवार का व्रत रखने से और शिव मंदिर में जलाभिषेक करने से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है। बेरोजगार और अकर्मण्य जातकों को रोजगार तथा काम मिलने से मानप्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। सदगृहस्थ नौकरी पेशा या व्यापारी को श्रावण के सोमवार व्रत करने से धन धान्य और लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
वहीं भगवान श्री कृष्‍ण के वृन्‍दावन में भी सावन के महीने में बहारें छायीं रहेंगीं, जहॉं झूलों और रास लीला‌ओं का परम्‍परागत उत्‍सव रहेगा वहीं कृष्‍ण साधना और कृष्‍ण पूजा भी इन दिनों भारी संख्‍या में होगी ।
सावन (shavan) के पूरे महीने जहॉं शिव और कृष्‍ण की पूजा और साधना परम्‍परा चलेगी वहीं शिवालय और कृष्‍ण मन्दिर इन दिनों लोगों के मेलों से घिरे रहेंगे ।
आज भी उत्तर भारत में कांवड़ परम्परा का बोलबाला है। श्रद्धालु गंगाजल लाने के लि‌ए हरिद्वार  ,  गढ़ गंगा और प्रयाग जैसे तीर्थो में जाकर जलाभिषेक करने हेतु कांवड़ लेकर आते हैं। यह सब साधन शिवजी की कृपा प्राप्त करने के लि‌ए है।

Shravan Purnima Raksha Bandhan 2014


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Sun, 10 August 2014 - Shravani Purnima (Full Moon Day) a day of celebrations for Lord Shiva’s Devotee, while Raksha Bandhan is a festival meant for Brothers and Sisters.

10 August 2014 – Rakhi Muhurta & Mantra
Around mid-August, Hindus all over the world celebrate Shravan Purnima Raksha Bandhan. “Raksha” means protection, and “bandhan” means bound or binding.Raksha Bandhan is primarily a Indian festival kindling the deepest emotions of love and affection amongst the siblings.
Just like all Indian festivals, this is also celebrated with lots of verve. The sister ties the rakhi on the brother’s wrist and both pray for each others’ well being followed by a pledge from the brother to take care of his sister under all circumstances. The brother then usually gifts something to the sister to mark the occasion. Celebrated enveloped in the festivities. The mirth that surrounds the festival is unsurpassed. Amidst the merriment the rituals are also followed with great devotion.
Raksha Bandhan is a festival celebrating the bond of affection between brothers and sisters. The day when the siblings pray for each others’ well being and wish for each others’ happiness and goodwill. As the name ‘Raksha Bandhan’ suggests, ‘a bond of protection’, Raksha Bandhan is a pledge from brothers to protect the sister from all harms and troubles and a prayer from the sister to protect the brother from all evil.
The festival falls on the Shravan Purnima (full moon day of shravan month) which comes generally in the month of August. The sisters tie the silk thread called rakhi on their brother’s wrist and pray for their well being and brothers promise to take care of their sisters. The festival is unique to India creates a feeling of belongingness and oneness amongst the family.

Nag Panchami – नागपूजा भक्तोंको देता है सर्पभय से मुक्ति


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श्रावणमासके शुक्लपक्षकी पंचमी तिथिको नागपंचमी (Nag Panchami – Fri, 1 August 2014) का त्योहार नागोंको समर्पित है। इस त्योहारपर व्रतपूर्वक नागोंका अर्चन-पूजन होता है। वेद और पुराणोंमें नागोंका उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रूसे माना गया है। नागोंका मूलस्थान पाताललोक प्रसिद्ध है।

पुराणोंमें ही नागलोककी राजधानीके रुपमें भोगवतीपुरी विख्यात है। भगवान्‌ विष्णुकी शय्याकी शोभा नागराज शेष बढ़ाते हैं। भगवान्‌ शिव और गणेशजीके अलंकरणमें भी नागोंकी मह्त्त्वपूर्ण भूमिका है। पुराणोंमें भगवान्‌ सूर्यके रथमें द्वादश नागों का उल्लेख मिलता है, जो क्रमश: प्रत्येक मासमें उनके रथ के वाहक बनते हैं। नागदेवता भारतीय संस्कृतिमें देवरुपमें स्वीकार किये गये हैं।

देवी भागवतमें प्रमुख नागोंका नित्य स्मरण किया गया है। हमारे ऋषि-मुनियोंनें नागोपासनामें अनेक व्रत-पूजनका विधान किया है। श्रावणमासके शुक्ल पक्षकी पंचमी नागोंको अत्यन्त आनन्द देनेवाली है -‘नागानामानन्दकरी’ पंचमी तिथिको नागपूजामें उनको गो-दुग्धसे स्नान करानेका विधान है। कहा जाता है कि एक बार मातृ-शापसे नागलोक जलने लगा । इस दाहपीडाकी निवृत्तिके लिये (नागपंचमीको) गो-दुग्धस्नान जहाँ नागोंको शीतलता प्रदान करता है, वहाँ भक्तोंको सर्पभय से मुक्ति भी देता है।

ब्रह्माजीने पंचमी तिथिको नागोंको पाण्डववंशके राजा जनमेजय द्वारा किये जानेवाले नागयज्ञसे यायावरवंशमें उत्त्पन्न तपस्वी जरत्कारु के पुत्र आस्तीक द्वारा रक्षाका वरदान दिया था। तथा इसी तिथिपर आस्तीकमुनिने नागोंका परिरक्षण किया था । अत: नागपंचमीका यह पर्व ऎतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है ।
श्रावनमासके शुक्लपक्षकी पंचमीको नागपूजाका विधान है। व्रतके साथ एक बार भोजन करने का नियम है। पूजामें पृथ्वीपर नागोंका चित्राड्कन किया जाता है। स्वर्ण, रजत, काष्ठ या मृत्तिकासे नाग बनाकर पुष्प, गुन्ध, धूप-दीप एवं विविध नैवेधोंसे नागोंका पूजन होता है।
निज गृहके द्वारमें दोनों ओर गोबरके सर्प बनाकर उनका दधि, दूर्वा, कुशा, गन्ध, अक्षत, पुष्प, मोदक और मालपुआ आदिसे पूजा करने और ब्राह्मणोंको भोजन कराकर एकभुक्त व्रत करनेसे घरमें सर्पोंका भय नहीं होता है।
On Nag Panchami, the women draw figures of snakes on the walls of their houses using a mixture of black powder, cow dung and milk.
Then offerings of milk, ghee, water and rice are made. It is believed that in reward for this worship, snakes will never bite any member of the family.

Nag Panchami : Mantra and Puja

Nag Panchami : Mantra and Puja

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Nag Panchami (Shravan Krishna Paksha) : Wed, 16 July 2014 (Rajasthan & W. Bengal)

Nag Panchami (Shravan Shukla Paksha) :  Friday, 1 August 2014 (All India)

On Nag Panchami, the women draw figures of snakes on the walls of their houses using a mixture of black powder, cow dung and milk. Then offerings of milk, ghee, water and rice are made. It is believed that in reward for this worship, snakes will never bite any member of the family.
The snake deity worshipped on Naag Panchami is the Goddess Manasa.

Naag Puja and Mantra

KaalSarp Puja
KaalSarp Puja
There is also a sanskrit mantra to offer pray to Nine prime Naag (devta)
Naag Mantra